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________________ २४४ : जैन तर्कशास्त्र में अनुमान-विचार हेमचन्द्रोक्त अनुमानाभास : हेमचन्द्रने' स्वार्थानुमान प्रकरणमें साध्यलक्षणके प्रसंगसे प्रत्यक्षबाधा आदि छह बाधाओं ( पक्षाभासों) निर्देश किया है। इनमें पांच तो न्यायप्रवेशकार और माणिक्यनन्दि सम्मत हैं और अन्तिम प्रतीतिबाधा धर्मकीतिसम्मत । इन्होंने सिद्ध और अनिष्ट पक्षाभासोंको अस्वीकार तो नहीं किया, किन्तु उनका स्पष्ट प्रतिपादन भी नहीं किया । परार्थानुमान प्रकरण में दिङनाग, सिद्धसेन और देवसूरि स्वीकृत तीन हेत्वाभासोंका कथन किया है। असिद्धके' स्वरूपासिद्ध और सन्दिग्धासिद्ध दो भेद बतलाकर वादी, प्रतिवादी और उभयकी अपेक्षासे उक्त दोनों असिद्धोंके तीन-तीन भेद और भी निरूपित किये हैं। विशेष्यासिद्धादि पराभिमत असिद्धभेदोंका इन्हीं में अन्तर्भाव किया है। अन्य ताकिकों द्वारा स्वीकृत आठ विरुद्धभेदोंको उदाहृत करके उन्हें विरुद्धलक्षण द्वारा ही संगृहीत किया है। हेमचन्द्रको विशेषता है कि इन्होंने धर्मकीतिको तरह ९-९ दृष्टान्ताभास न मान कर आठ-आठ माने हैं । अनन्वय और अव्यतिरेक दो दृष्टान्ताभास स्वीकार नहीं किये, प्रत्युत उनकी मीमांसा की है और उन्हें अप्रदर्शितान्वय और अप्रदर्शितव्यतिरेक दृष्टान्ताभासोंसे अभिन्न बतलाया है। उपनयाभास, निगमनाभास और वालप्रयोगाभासके विषय में हेमचन्द्र मौन हैं । अन्य जेन तार्किकोंका मन्तव्य : १. धर्मभूषण-पिछले जैन तार्किक धर्मभूषण, चारुकीति और यशोविजयने भो अनुमानदोषोंपर चिन्तन किया है। धर्मभूषणने पक्षाभासोंका तो कोई पृथक विचार नहीं किया। हाँ, बाधितपक्षाभासके भेदोंका अकिचित्कर हेत्वाभासके द्वितीय भेद बाधितविषयके अन्तर्गत कथन अवश्य किया है । माणिक्यनन्दि सम्मत चार हेत्वाभास बतलाये है । अकिंचित्करके सिद्धसाधन और बाधितविषय ये दो १. प्र. मो० १।१४ । २. म० मी०, २।१।१६ । ३. वहो, २.१११७, १८, १९ । ४. 'अनेन येऽन्यैरन्ये विरुद्धा उदाहृतास्तेऽपि सङ गृहीताः...... -बहो, २।१।२०।। ५. साधर्म्यवैधाभ्यामष्टावष्टौ दृष्टान्ताभासाः । -वही, २.१.२२ । ६. प्र० मी० २।१।२७, पृ० ५९ । ७. न्या. दो० पृ० ६ । ८. अप्रयोजको हेतुरकिंचित्करः । स दिविषः-सिद्धसाधनो बाधितविषयश्चेति ।...... -न्या० दो० पृ. १०२-१०३ ।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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