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________________ २५८ : जैन तर्कशास्त्र में अनुमान-विचार जा चुके थे, पर गौतमके न्यायसूत्र, दिङ्नागशिष्य शङ्करस्वामी के न्यायप्रवेश और धर्मकीतिके न्यायविन्दु की तरह जैनन्यायको गद्यसूत्रोंमें निबद्ध करनेवाला कोई गद्यन्यायमूत्र ग्रन्थ नहीं रचा गया था। माणिक्यनन्दिने जैन न्यायको गद्यसूत्रोंमें निबद्ध करनेवाली अपनी महत्त्वपूर्ण कृति 'परीक्षामुख', जो जैन परम्पराका प्रथम 'न्यायसूत्र' है और जिसे उनके टीकाकार अनन्तवीर्यने 'न्यायविद्या' एवं अकलंकके वचोम्भोधिका 'अमृत' कहा है, लिखकर उक्त कमीको पूरा किया है । इसके अन्तिम परिच्छेदमें माणिक्यनन्दिने अनुमानाभास प्रकरणको आरम्भ करते हुए उसे चार वर्गोंमें विभक्त किया है-(१) पक्षाभास, (२) हेत्वाभास, ( ३ ) दृष्टान्ताभास और ( ४ ) बालप्रयोगाभास। इनमें आद्य तीन तो सभी ताकिकोंके द्वारा चचित एवं निरूपित हैं। किन्तु अन्तिम चतुर्थ बालप्रयोगाभास का निरूपण हम स्पष्टतया माणिक्यनन्दिके परीक्षामुखमें पाते हैं। (१) त्रिविध पक्षाभास माणिक्यनन्दिने अकलंककी तरह इसके तीन भेद बतलाये हैं- (१) अनिष्ट, (२) सिद्ध और (३) बाधित । बाधितके भी उन्होंने पांच प्रकार निर्दिष्ट किये है। ये वही है जिनका वादिराजने भी निर्देश किया है और जिनके विषयमें हम ऊपर प्रकाश डाल आए हैं । पर माणिक्यनन्दिके उदाहरण इतने विशद और स्वाभाविक है कि अध्येता उनकी ओर स्वभावतः आकृष्ट होता है । यथा( १ ) प्रत्यक्षबाधित -अग्नि अनुष्ण है, क्योंकि द्रव्य है, जलकी तरह, यहां अग्निको अनुष्णता स्पार्शनप्रत्यक्षसे बाधित है । ( २ ) अनुमानबाधित-शब्द अपरिणामी है, क्योंकि कृतक है, घटकी तरह । यहां शब्द परिणमनशील है, क्योंकि वह किया जाता है, जैसे घट । इस अनुमानसे उपर्युक्त पक्ष बाधित है। १. अकलंकवचाम्भोधेरुद्दधे येन धीमता । न्यायविद्यामृतं तस्मै नमो माणिक्यनन्दिने ॥ -प्रमेयर० मा० पृ० ३-४ । २. इदमनुमानाभासम् । -परोक्षामु०६।११। ३. तत्रानिष्टादिः पक्षामासः । अनिष्टो मीमासकस्यानित्यः शब्दः । सिद्धः श्रावणः शब्दः । बाधितः प्रत्यक्षानुमानागमलोकस्ववचनैः । -वही, ६।१२-१५। ४. तत्र प्रत्यक्षबाधितो यथाऽनुष्णोऽग्निद्रव्यवाज्जलवत् । -परोक्षामु०६।१६ ।। ५. अपरिणामो शन्दः कृतकत्वाद् घटवत् । -वही, ६।१७।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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