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________________ हेतु-विमर्श : २१५ १०. व्यापक विरुद्धब्बाप्य - स्याद्वादीके विपरीतादिमिथ्यादर्शन विशेष नहीं हैं, क्योंकि सत्यज्ञान विशेष है । विपरीतादिमिथ्यादर्शन विशेषोंका व्यापक मिथ्यादर्शनसामान्य है, उसका विरोधी तत्त्वज्ञानसामान्य है, उसका व्याप्य सत्यज्ञानविशेष है । ११. कारणव्यापकविरुद्धव्याप्य - इसके प्रशम आदि नहीं हैं, क्योंकि मिथ्याज्ञानविशेष है । प्रशम आदिका कारण सम्यग्दर्शनविशेष है, उसका व्यापक सम्यग्दर्शन सामान्य है, उसका विरोधी मिथ्याज्ञानसामान्य है, उसका व्याप्य मिथ्याज्ञानविशेष है । १२. व्यापककारणविरुद्धव्याप्य - इसके तत्त्वज्ञानविशेष नहीं हैं, क्योंकि मिथ्यार्थोपदेशका ग्रहण है । तत्त्वज्ञनविशेषोंका व्यापक तत्त्वज्ञानसामान्य है, उसका कारण तत्त्वार्थोपदेशग्रहण है, उसका विरोधी मिथ्यार्थोपदेशग्रहणसामान्य है, उससे व्याप्त मिथ्यार्थीपदेशग्रहण विशेष है । १३. कारणविरुद्ध सहचर - इसके प्रशम आदि नहीं है, क्योंकि मिथ्याज्ञान है । प्रशम आदिका कारण सम्यग्दर्शन है, उसका विरोधी मिथ्यादर्शन है, उसका सहचर मिथ्याज्ञान है । १४. व्यापक विरुद्धसहचर - इसके मिथ्यादर्शनविशेष नहीं हैं, क्योंकि सम्यज्ञान है । मिथ्यादर्शनविशेषोंका व्यापक मिथ्यादर्शनसामान्य है, उसका विरोधी तत्त्वार्थश्रद्धानरूप सम्यग्दर्शन है, उसका सहचर सम्यग्ज्ञान है । १५. कारणव्यापक विरुद्ध सहचर - इसके प्रशम आदि नहीं हैं, क्योंकि मिथ्याज्ञान हैं । प्रशम आदिका कारण सम्यग्दर्शनविशेष हैं, उनका व्यापक सम्यग्दर्शनसामान्य है, उसका विरोधी मिथ्यादर्शन है, उसका सहचर मिथ्याज्ञान है । १६. व्यापककारणविरुद्धसहचर - इसके मिथ्यादर्शनविशेष नहीं हैं, क्योंकि सत्यज्ञान है । मिथ्यादर्शन विशेषोंका व्यापक मिथ्यादर्शन सामान्य है, उसका कारण दर्शनमोहोदय है, उसका विरोधी सम्यग्दर्शन है, उसका सहचर सम्यग्ज्ञान है । २ इस प्रकार विद्यानन्दने र विरोधी ६ परम्पराविरोधी १६ कुल २२ साक्षात् विरोधी हेतुओंका विस्तृत कथन किया है । उल्लेखनीय है कि कणादने विरोधी हेतुके अभूतभूत, भूतमभूत और भूतभूत तीन प्रकारोंका निर्देश किया है । पर विद्यानन्दने अभूत अभूतनामक चौथे भेद १. प्र० प० पृ० ७४ । २, ३. तदेतत्सामान्यतो विरोधिलिंगं प्रपंचतो द्वाविंशतिप्रकारमपि भूतमभूतस्य गमकमन्यथानुपपत्तिनियमनिश्चलक्षणत्वात्प्रतिपत्तव्यम् । -प्र० प० पृ० ७४ ।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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