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________________ १४ : जैन तर्कशास्त्र में अनुमान- विचार ( ग ) वादिराज द्वारा अभिहित अनुमानभेद - समीक्षण (घ) प्रभाचन्द्र प्रतिपादित अनुमानभेद - आलोचना अनुमानभेद - समीक्षाका उपसंहार स्वार्थ और परार्थ वादिराजकृत मुख्य और गौण अनुमानभेद ११-१२ प्रत्यक्ष परार्थ है : सिद्धसेन और देवसूरिका मत : उसकी मीमांसा स्त्रार्थानुमानके अङ्ग धर्मोकी प्रसिद्धता परार्थानुमानके अङ्ग और अवयव द्वितीय परिच्छेद व्याप्ति-विमर्श ( क ) व्याप्तिस्वरूप ( ख ) उपाधि ( ग ) उपाधिनिरूपणका प्रयोजन (घ) जैन दृष्टिकोण (ङ) व्याप्ति-ग्रहण ( १ ) बोद्ध व्याप्ति - ग्रहण ( २ ) वेदान्त व्याप्ति-स्थापना ( ३ ) सांख्य व्याप्ति - ग्रहण ( ४ ) मीमांसा व्याप्ति-ग्रह ( ५ ) वैशेषिक व्याप्ति-ग्रह ( ६ ) न्याय व्याप्ति -ग्रह (च) जैन विचारकों का मत : तर्क द्वारा व्याप्तिग्रहण निष्कर्ष (छ) व्याप्ति-भेद अवयव - समव्याप्ति - विषमब्याप्ति अन्वयव्याप्ति-व्यतिरेकव्याप्ति साधर्म्यव्याप्ति - वैधर्म्यव्याप्ति तथोपपत्ति-अन्यथानुपत्ति बहिर्व्याप्ति, सकलव्याप्ति, अन्तर्व्याप्ति चतुर्थ - अध्याय प्रथम परिच्छेद व-विमर्श ११७ ११८ ११ ११९ १२१ १२४ १२६ १२६ १२९ १३०- १५८ १३० १३० १३२ १३३ १३५ १३७ १३८ १३९ १४० १४० १४१ १४२ १४६ १५३ १५५ १५५ १५५ १५६ १५६ १५७ १५९ - १८८ १५९
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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