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________________ अवयव-विमर्श : १.. उपनयसहित चार और निगमन सहित पांच अवयवोंके प्रयोगोंको भी जैन ताकिकोंने' स्वीकार किया है। भद्रबाहु२, देवसूरि३,हेमचन्द्र , यशोविजय" आदि ताकिकों ने प्रतिज्ञाशुद्धि आदि दश अवयवोंके प्रयोगको भी मान्य किया है । यहां इन सबपर क्रमश: विचार किया जाता है । दृष्टान्तके लिए उदाहरण और निदर्शन शब्दोंका भी प्रयोग किया गया है। न्यायसूत्रकारने दृष्टान्त और उदाहरण दोनों शब्द दिये हैं तथा दृष्टान्तके वचनको उदाहरणका स्वरूप बतलाया है। प्रशस्तपादने निदर्शन शब्द प्रयुक्त किया है। न्यायप्रवेशकारने दृष्टान्त शब्दको चुना है। धर्मकीर्तिने दृष्टान्तको साधनावयव न माननेसे उसका निर्देश केवल निरासार्थ किया है । जैन तार्किकोंने दृष्टान्त, निदर्शन और उदाहरण तीनों शब्दोंका प्रयोग किया है । सिद्धसेनने ° दृष्टान्त, अकलंकने । दृष्टान्त और निदर्शन तथा माणिक्यनन्दिने २ दृष्टान्त, निदर्शन और उदाहरण तीनोंको दिया है। ध्यातव्य है कि न्यायदर्शनमें दृष्टान्तको उदाहरणसे पृथक् स्वतन्त्र पदार्थ के रूपमें भी प्रतिपादित किया है और उसका कारण एवं विशेष प्रयोजन यह बतलाया गया है१३ १. प्रतिपाद्यानुरोधेन प्रयोगोपगमात् । यथैव हि करयचित्पतिबाध्यस्यानुरोधेन साधनवाक्ये सन्धाऽभिधीयते तथा दृष्टान्तादिकमपि । कुमारनन्दिभट्टारकैरप्युक्तम्प्रतिपाद्यानुरोधन प्रयोगेपु पुनर्यथा। प्र तशा प्रोच्यतः तज्शंस्तथोदाहरणादिकम् ॥ -विद्यानन्द, पत्रपरी० पृ० ३, माणिक्यनन्दि। देवसूरि, प्र० न० त० ३।४२ । हेमचन्द्र, प्र० मी० २।१।१०। धर्मभूषण, न्या० दी० पृ० १०३ । यशोविजय, जैनतकभा० पृ० १६ । २. दशवै० नि० गा० ५०, १३७ । ३. स्या० रत्ना० ३।४२, पृ० ५६५ । ४. प्र० मी० २।१।१० की स्वो० वृ० पृ० ५२ । ५. जैनतर्कभा० पृ० १६ । ६. न्यायसू० ११११३६ । ७. प्रश० भा० पृ० ११४, १२२ । ८. न्यायप्र० पृ० १। 8. तावतैवार्थप्रतीतिरिति न पृथग्दृष्टान्तो नाम । -न्या०बि० तृ० परि० पृष्ठ ११ । १०. न्यायाव० का० १८, १६ । ११. अकलंकग्रन्थ० पृ० ८०,४२, १०६, १२७ । १२. परीक्षाम० ३।२७, ४०, ४७, ४८, ४६ । १३. दृष्टान्तविरोधेन हि प्रतिपाद्याः प्रतिषेच्या भवन्ति, दृष्टान्तसमाधिना च स्वपक्षाः स्थापनीया भवन्तीति, अवयवेषु चोदाहरणाय कल्पत इति । -वात्स्यायन, न्यायमा० १११२५, पृ० ४३ । २३
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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