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________________ अनुमानभेद-विमर्श : १११ जयन्तभट्ट और केशवमिश्र द्वारा अनुसत स्वार्थ-परार्थ द्विविध भेदवाली अनुमानपरम्परा ही अपनायी गयो है, अन्य अनुमानभेद उसमें चचित नहीं हैं । केवलान्वयी आदिको इन्होंने भी लिङ्गभेदोंमें परिगणित किया है। लगता है कि न्यायदर्शनमें अनुमान-भेदोंके सम्बन्धमें एकवाक्यता नहीं रही। वाचस्पति तक तो न्यायसूत्रोक्त त्रिविध भेदवाली अनुमान-परम्परा मिलती है और उनके उत्तरकालमे या तो उद्योतकरकी केवलान्वयी आदि तीन भेदोवाली या जयन्तभट्ट द्वारा स्वीकृत प्रशस्तपादोक्त स्वार्थ-परार्थ द्विविध भेदवाली परम्परा आदृत है। इस प्रकार न्यायदर्शन में अनुमानभेदोंकी तोन परम्पराएँ उपलब्ध होती हैं जो समयक्रमसे प्रतिष्ठित हई हैं। तीसरी परम्परापर तो स्पष्टतः वैशेषिकों और सम्भवतः वौद्धोंका प्रभाव परिलक्षित होता है । सांख्य : ___ सांख्यदर्शनके प्राचीन ग्रन्थ सांख्यकारिकाम' अनुमानके तीन भेद बतलाये हैं। परन्तु उनकी परिगणना नहीं की। अगली कारिकामें एक सामान्यतोदृष्टर अनुमानका अवश्य निर्देश किया और उसमे अतीन्द्रिय पदार्थोकी सिद्धिका कथन किया है। पर युक्तिदोपिकाकार, माठरवृत्तिकार और तत्त्वकौमुदीकारने' अपनी व्याख्याओंमें उन भेदोंको स्पष्ट किया है। वे भेद वही है जो न्यायसूत्र में वर्णित हैं। वाचस्पतिन' उद्योतकरकी तरह अनुमानक वीत और अबीत ये दो भेद भी प्रदर्शित किये हैं । वीतको पूर्ववत् और सामान्यतोदृष्ट तथा अवीतको शेपवत् बतलाकर उन्होंने मांख्य और न्यायपरम्पराके अनुमान विध्यके साथ समन्वय भी किया है। उद्योतकरके ' संकेतानुसार वाचस्पतिने एक प्राचीन कारिकाके उद्धरणपूर्वक सांख्यदर्शनके सप्तविध अनुमानोंका भी उल्लेख किया है और 'इत्यपि १. त्रिविधमनुमानमाख्यातम् । -ईश्वरकृष्ण, सांख्यका० ५। २. सामान्यतस्तु दृष्टादतीन्द्रियाणां प्रतीतिरनुमानात् । वहा, का० ६ । ३. यु० दी० पृ० ४३ । ४. माठर, माठरवृ० का० ५ । ५. तत्सामान्यतो लक्षितमनुमानं विशपस्त्रिविधम्-पूर्ववत् शपवत् सामान्यतादृष्टं चेति । -सां० त० को० का० ५, पृ० ३०।। ६. तत्र प्रथमं तावत् द्विविधम्-त्रीतमवीतं च। तत्रावीतं शेषवत् । वीतं बंधा-पूर्ववत् सामान्यतादृष्टं च। वही, का० ५, पृ० ३०-३१ । ७. न्यायवा० १११५, पृ० ५७ । ८. न्यायवा० ता० टो० ११११५, पृ० १६५ ।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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