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________________ १०४ : जैन तर्कशास्त्र में अनुमान-विचार कहते हैं कि 'हम घटरहित भूतलको देखते हैं तो भूतलके साथ उसके विशेषणरूपसे घटरहिताको भी देखते हैं। यह असम्भव है कि दण्डवाले देवदत्तको देखें और दण्डको न देखें । यतः विशेषणके ज्ञानके बिना 'दण्डवाला देवदत्त' ऐसा विशिष्ट ज्ञान नहीं हो सकता। इसी प्रकार घटरहित भूतलको देखते समय उसके घटरहितता-विशेषणका ज्ञान हुए बिना 'घटरहित भूतल' ऐसा विशिष्ट प्रत्यक्ष नहीं हो सकता। अत: जब हम ऐसा जानते हैं या शब्दप्रयोग करते हैं कि 'घटरहित भूतल है' या 'भूतल घटरहित है' तो अनिन्द्रिय प्रत्यक्ष ( मानस प्रत्यक्ष ) द्वारा ही घटाभावका ज्ञान होता है। किन्तु जब हम ऐसा जानते या ज्ञान करते हैं कि 'यहां घड़ा नहीं है, क्योंकि उपलब्ध नहीं होता', तो यह घटाभावज्ञान अनुपलब्धिलिंगजनित अनुमान है।३ सच यह है कि अनेकबार भूतल पर घड़ा देखा था, परन्तु अमुक बार उसका दर्शन नहीं हुआ तो वहां स्वभावतः अकेले भूतलको देखने और भूतलसंसृष्ट घड़ेका स्मरण होने पर 'यहां घड़ा नहीं है, क्योंकि वह देखनेमें नहीं आता, यदि होता तो अवश्य दिखाई देता' इस प्रकारका ऊहापोह ( तर्क ) पूर्वक उत्पन्न यह लैंगिक ( अनुमान ) ज्ञान ही है, भले ही उसे मानस कहा जाए, क्योंकि अनुमान भी मानसज्ञानका एक प्रकार है । अतः अभावप्रमाण अनुमानसे अर्थान्तर नहीं है--उसीमें उसका समावेश है। यही कारण है कि अनुमानके प्रधान अंग हेतुके भेद-प्रभेदोंमें प्रतिषेधसाधक उपलब्धि हेतु और विधि तथा प्रतिषेधसाधक अनुपलब्धि हेतुओंकी भी परिगणना की गयी है और उनसे होने वाले अनुमेयार्थ-अभावके ज्ञानको अनुमान प्रतिपादन किया है। सम्भवका अनुमानमें अन्तर्भाव : सम्भव प्रमाण भी अनुमानसे भिन्न नहीं है। यह एक प्रकारका सम्भाव १. भावाभावत्मके मावे भाववित्स्यादभाववित् ॥ प्रागभावाद्यभावशा नन्वभावप्रमा, ततः। भावप्रमाणतोऽन्यायास्तस्या एवानिरीक्षणात् । -वादीभसिंह, सम्पा०दरबारीलाल कोठिया, स्याद्वादसि० १२१८, १,२ । निषेध्याधारो वस्त्वन्तरं प्रतियोगिसंसृष्टं प्रतोयये असंसृष्टं वा ? ...। द्वितीयपक्षे अभावप्रमाणवैयर्थ्यम्, प्रत्यक्षेणैव प्रतियोगिनोऽभावप्रतं.तेः। -प्रभाचन्द्र, प्रमेयक० मा० २।२, पृष्ठ २०३ । २. अत्रेति शानमध्यक्ष प्राग्विशाते घटे स्मृतिः। अनुपलम्भता नास्तीत्युक्तावनुमितिर्भवेत् ।। स्वार्थानुभूतिसम्भूतिघटादिस्मरणे भवेत् । हेत्वादिवचने तत्स्यात्परार्थाऽपि च साऽनमा ॥ वादीभसिंह, स्या० सि० १२।३, ५। ३. परीक्षामुख ३३५४, ६७-८५ ।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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