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________________ अनुमान - समीक्षा : ९५ हेमचन्द्रने' भी माणिक्यनन्दिकी तरह अकलंककी ही अनुमान - परिभाषा अक्षरशः स्वीकार की है और उसे उन्हींको भाँति सूत्ररूप प्रदान किया है । ૨ ४ धर्मभूषण ने अकलंकका न्यायविनिश्चयोक्त लक्षण प्रस्तुत करके उसका विशदीकरण किया है । इस विशदीकरणसे वह भ्रान्ति नहीं रहती जो 'साधन' पदसे साधनको ही जैन दर्शनमें अनुमानका कारण मानने और साधनज्ञानको न मानने सम्बन्धी होती है । तात्पर्य यह कि उन्होंने 'साधन' पदका 'निश्चयपथ प्राप्त साधन' अर्थ देकर उस भ्रान्तिको भी दूर किया है। इसके अतिरिक्त धर्मभूषणने उद्योतकर द्वारा उपज्ञ तथा वाचस्पति आदि द्वारा समर्थित 'लिंगपरामर्शोsनुमानम्' इस अनुमान - परिभाषा की समीक्षा भी उपस्थित की है । उनका कहना है कि यदि लिंगपरामर्श ( लिंगज्ञान - लिंगदर्शन ) को अनुमान माना जाय तो `उससे साध्य ( अनुमेय ) का ज्ञान नहीं हो सकता, क्योंकि लिंगपरामर्शका अर्थ लिंगज्ञान है और वह केवल लिंग --साधन सम्बन्धी अज्ञानको ही दूर करने में समर्थ है, साध्यके अज्ञानको नहीं । यथार्थ में 'वह निव्याप्यधूमवानयं पर्वत:' इस प्रकारके, लिंग में होने वाले व्याप्तिविशिष्ट तथा पक्षधर्मता के ज्ञानको परामर्श कहा गया है - 'व्याप्तिविशिष्टपचधर्मताज्ञानं परामर्शः । अतः परामर्श इतना ही बता सकता है कि धूमादि लिंग अग्नि आदि साध्योंके सहचारी हैं और वे पर्वत आदि ( पक्ष ) में हैं । और इस तरह लिंगपरामर्श मात्र लिंगसम्बन्धी अज्ञानका निराकरण करता है एवं लिंगके वैशिष्टयका ज्ञान कराता है, अनुमेय - सम्बन्धी अज्ञानका निरास करता हुआ उसका ज्ञान कराने में वह असमर्थ है । अतएव लिंगपरामर्श अनुमानकी सामग्री तो हो सकता है, पर स्वयं अनुमान नहीं । अनुमानका अर्थ है अनुमेयसम्बन्धी अज्ञानकी निवृत्ति पूर्वक अनुमेयार्थका ज्ञान । इस'लिए साध्य - सम्बन्धी अज्ञानको निवृत्तिरूप अनुमिति में साधकतम करण तो साक्षात् साध्यज्ञान ही हो सकता है । अतः साध्यज्ञान ही अनुमान है, लिंगपरामर्श नहीं । यहाँ इतना और स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि जिस प्रकार धारणानामक अनुभव स्मृतिमें, तात्कालिक अनुभव और स्मृति प्रत्यभिज्ञानमें, एवं साध्य तथा साधन विषयक स्मरण, प्रत्यभिज्ञान और अनुभव तर्कमें कारण माने जाते हैं, १. साधनात्साध्यविज्ञानम् अनुमानम् । - प्र० मी० १ २७, पृष्ठ ३८ । २. न्या० दी० पृ० ६५, ६७ । ३. वही, पृष्ठ ६६ । ४. न्यायवा० ११११५, पृष्ठ ४५ ।
SR No.010313
Book TitleJain Tark Shastra me Anuman Vichar Aetihasik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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