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________________ दशवेकालिक सूत्र चू. १ ७३ 1 जया य वदिमो होइ पच्छा होइ अवदिमो । देवया व चुया ठाणा, स पच्छा परितप्पई |३| जया य पूइमो होइ, पच्छा होइ अपूइमो । राया य रज्जपब्भट्ठो, स पच्छा परितप्पड़ |४| जया य माणिमो होइ, पच्छा होइ श्रमाणिमो । सिट्टिव्व कव्वडे छूढो, स पच्छा परितप्पइ |५ जया य थेस्लो होइ, समइक्कंत जुव्वणो । मच्छुन्व गलं गिलित्ता, स पच्छा परितप्पइ |६| जया य कुकुडुबस्स, कुतत्तीहि विहम्मइ । हत्थी व बंधणे बद्धो, स पच्छा परितप्पइ ॥७॥ पुत्तदारपरिकिण्णो, मोहसंताणसंतो । पकोसण्णो जहा नागो, स पच्छा परितप्पइ १८ अज्ज ग्राह गणी हुतो, भाविश्रप्पा बहुस्सु । जssहं रमतो परियाए, सामण्णे जिणदेसिए || देवलोगसमाणो य, परियात्रो महेसिणं । रयाणं अरयाण च, महानरयसारियो । १०। अमरोवम जाणिय सुक्खमुत्तम, रयाण परियाइ तहाऽरयाणं । नरोवमं जाणिय दुक्खमुत्तमं रमिज्ज तम्हा परियाय पंडिए |११| धम्माउ भट्ठ सिरिश्रो श्रवेय, जण्णग्गि विज्झायमिवऽप्पतेय । होलति णं दुव्विहियं कुसीला, दादुद्धियं घोरविस व नागं ॥ १२ ॥ sasaमो प्रयसो अकिंत्ती, दुन्नामधिज्ज च पिहुज्जणम्मि । चुयस्स धम्माउ अहम्मसेविणो, सभिण्णवित्तस्स य हिदुओ गई । १३० भुजित्तु भोगाई पसज्मचेयसा, तहाविहं कट्टु श्रसंजमं बहुं ! ,
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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