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________________ ६८ जैन स्वाध्यायमाला जे माणिया सययं माणयंति, जत्तेण कण्णं व निवेसर्यात | ते माणए मारिहे तवस्सी, जिइंदिए सच्चरए स पुज्जो | १३| तेसिं गुरुण गुणसायराणं, सुच्चाण मेहात्री सुभासियाई । चरे मुणी पंचरए तिगुत्तो, चउक्कसायावगए स पुज्जो | १४ | गुरुमिह सययं पडियरिय मुणी, जिणमयणिउणे श्रभिगम कुसले । क्षुणिय रयमलं पुरेकर्ड, भासुरमउलं गइ गम्रो । १५ । ॥ विणय समाहीए तइओ उद्देसो समत्तो ॥ चउत्थो उद्देसो सुयं मे प्रउस तेणं भगवया एवमक्खाय इह खलु थेरेहि भगवतेहि चत्तारि विषयसमाहिद्वाणा पण्णत्ता । कयरे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिद्वाणा पण्णत्ता ? इमे खलु ते थेरेहिं भगवतेहिं चत्तारि विणयसमाहिद्वाणा पण्णत्ता तंजा - विणयसमाही सुयसमाही तवसमाही आयारसमाही । विणए सुए य तवे, आयारे निच्चपंडिया | अभिरामयंति अप्पाणं, जे भवति जिइदिया | १ | चविवहा खलु विजयसमाही भवइ तजहा - १ श्रणुसासिज्जतो सुम्सूसइ, सम्मं संपवडिज्जइ, वेयमाराहइ, न य भवइ अत्तसंपग्गहिए । चउत्थं पय भवइ । भवइ य इत्थ सिलोगो | पेइ हियाणुसासण, सुस्सूसई त च पुणो अहिट्ठए । न यमाणमएण मज्जइ, विणयसमाहि प्राययट्टिए |२| चविवहा खलु सुयसमाही भवइ तजहा सुय मे भविएसइ त्ति अभाइयन्वं भवइ । एगग्गचित्तो भविस्यामित्ति
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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