SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६ जैन स्वाध्यायमाला भुजमाणं विवज्जिज्जा, भत्त - सेस पडिच्छए । ३६ सिया य समट्टाए, गुव्विणी कालमासिणी । उट्टिश्रा वा निसोईज्जा, निसन्ना वा पुणुट्ठए |४०| त भवे भत्तपाण तु, संजयाण अकप्पिय । दितियं पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिसं" । ४१॥ थणगं पिज्जमाणी, दारगं वा कुमारियं । तं निक्खिवित्तु रोयंतं, आहारे पाणभोयणं ॥ ४२ ॥ तं भत्रे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । दितियं पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिस " |४३| जं भवे भत्तपाण तु, कप्पाकप्पम्मि सकियं । दितिय पडियाइक्खे " न मे कप्पइ तारिसं” | ४४ | दग-वारेण पिहियं, नीसाए पीढएण वा । लोढेण वा वि लेवेण सिलेसेण व केणइ ॥४५॥ तच उभिदिया दिज्जा, समणट्टाए व दावए । दितियं पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिस" | ४६ | असणं पाणग वा वि, खाइम साइम तहा । जं जाणिज्ज सुणिज्जा वा, "दाणट्ठा पगडं इमं । ४७ । त भवे भत्तपाणं तु, सजयाण अकप्पिय । दितियं पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिस" | ४८ | श्रमण पाणग वा वि, खाइमं साइमं तहा । जं जाणिज्ज सुणिज्जा वा, "पुण्णट्ठा पगडं इमं ॥४६॥ तं भवे भत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं । दितिय पडियाइक्खे, "न मे कप्पइ तारिसं" 1५०|
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy