SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन स्वाध्यायमाला ३८७ ज्ञानचन्द्र मुनि सम्प्रदाय मे, सूरज बनकर चमके । हाँ कीर्ति बहुत ही पाए । हो०७। पा कर आपको लगता जैसे, मैंने सब कुछ पाया। "पारस" ने चरणो मे आपके, तन मन सभी चढाया । हाँ दया आपकी चाहे । हो । वन्दन हम करते नित उठ कर, श्री समर्थ स्वामी को । सन्त शिरोमणि संघ के नायक, ज्ञान-गच्छ स्वामी को ।। आगम ज्ञाता बहुश्रुत पडित, भव्यो के तारणहारे । सूत्र न्याय से समाधान कर, शका दूर निवारे । जडावनन्दन, दु खनिकन्दन, मोक्ष पन्थ गामी को । ११ जिनचरणो मे प्रतिवादी ने, अपना मद विसराया । जिन चरणो मे सन्त सती ने, अपना शीष झुकाया । मुलतान सुत जाति कुल युक्त, धन्य मोक्ष कामी को ।। उत्कृप्ट क्रिया के आराधक, साधक सत्य जिनवाणी। ऐसी नीति रीति पालक, नही है कोविद शानी । धर्म दीपावे कीत्ति पावे, शिव पदवी कामी को 1३। जैसा सुन्दर नाम आपका, वैसे गुण के धारी। सेवा विनय क्षमा आदि मे, स्थान अनुपम भारी । समता धारी ममता मारी,सकल श्रेय कामी को ।४। युग्म रूप से ज्ञान क्रिया का, योग मिला है भारी ।
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy