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________________ जैन स्वाध्यायमाला २६६ भगवं वागरेड जाव सवसिद्ध विमाणे उववन्ने ॥५॥ धन्नस्सण भते । देवस्स केवइय कालं ठिई पन्नत्ता ? गोयमा । तेत्तीस सागरोवमाइ ठिई पन्नत्ता ।।५२।। सेण भते । तारो देवलोगाओ आउक्खएण भवक्खएणं ठिई क्खएण कहिं गच्छिहिइ कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा । महाविदेहवासे सिझिहिइ बुझिहिइ मुच्चिहिइ परिणिव्वाहिइ सव्व दुक्खाणमत करेहिइ ॥५३।। एव खलु जम्बू । समणेण भगवया महावीरेणं जाव __ संपत्तेण पढमस्स अज्झयण्णस्स अयमठे पण्णत्ते ।।५४|| ॥ पढम अज्झयण सम्मत्त ।। जइणं भते । उक्खेवप्रो एवं खलु जम्बू । तेणं कालेणं तेण समएण काकदी नयरी होत्था भद्दा सत्यवाही परिवसइ ।। तीसेण भद्दाए सत्यवाही पुत्ते सुनक्खत्ते नामं दारए होत्या, अहिण जाव सुरूवे, पंचधाइ-परिक्खित्ते जहा धन्ने तहेव बत्तीस्सयो दामो जाव उप्पि पासायडिसए विहरइ ॥२॥ तेण कालेण तेणं समएण सामी समोसड्ढे जहा धन्ने तहा सुणक्खत्तेवि णिक्खत्ते जहा थावच्चापुत्तस्स तहा निक्खमणं जाव अणगारे जाए इरियासमिए जाव गुत्त वभयारी ॥३॥ तएण से सुनक्खत्ते अणगारे ज चेव दिवस समणस्स भगवओ महावीरस्स अतिए मुडे जाव पव्वइए त चेव दिवसं अभिग्गह तहेव विलमिव-पणगभूएणं आहारं पाहारेइ, संजमेणं जाव विहरइ जाव बहिया जणवयविहारं विहरइ, एक्कारस
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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