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________________ जैन स्वाध्यायमाला २६५ जहानामए-सुक्कछगणियाइ वा, वडपत्तेइ वा एवामेव हत्थाण जाव सोणियत्ताए ।३०। धन्नस्स हत्थगुलियाण अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहानामए-कलायसंगलियाइ वा, मुग्गसगलियाइ वा माससंगलियाइ वा, तरुणिया छिन्ना आयवे दिण्णा सुक्का समाणी एवामेव हत्थगुलियाण जाव सोणियत्ताए ।३१।। धन्नम्स गीवाए अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहानामए-करगगीवाइ वा, कुडियागोवाइ वा, (कोत्थवणाइ वा) उच्चट्ठवणएइ वा एवामेव गीवाए जाव सोणियत्ताए ।३२॥ धन्नस्स ण हणुयाए अयमेयारूवे तवरूवलावण्ण होत्था, - से जहानामए-लाउयफलेइ वा, हकुवफलेइ वा अवगट्टियाइ वा एवामेव हणुयाए जाव सोणियत्ताए ।३३। धन्नस्स ण ओट्ठाणं अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहानामए-सुक्कजोयाइ वा, सिलेसगुलियाइ वा, अलत्तगगलियाइ वा, (अबाडगपेसोयाइ वा) एवामेव प्रोट्ठाण जाव सोणियत्ताए ।३४। धन्नस्स णं जिब्भाए अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था, से जहानामए-वडपत्तेइ वा, पलासपत्तेइ वा (उबरपत्तेइ वा) सागपत्तेइ वा एवामेव जिब्भाए जाव सोणियत्ताए ।३५॥ धन्नस्स नासाए अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्था. से जहानामए-अंबगपेसियाइ वा, अवाडगपेसियाइ वा, माउलिंगपेसियाइ वा, तरुणियाइ वा, एवामेव नासाए जाव सोणियत्ताए। धन्नस्स अच्छीण अयमेयारूवे तवरूवलावण्णे होत्या से
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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