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________________ जैन स्वाध्यायमाला 11 २८७ ग्राहासुतं ग्रहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं समकाएण फासित्ता पालित्ता सोहित्ता तिरित्ता किट्टित्ता आणाए प्राराहित्ता | १२| जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वदइ नमसइ वदित्ता नमसित्ता बहुहिं चउत्थ छट्ट अट्टम दसम दुवालसेहि मासेहिं श्रद्धमासखमहिं विचित्तेंहि तवो कम्मेहि अप्पाण भावेमाणे विहरइ | १३ | तएण से जाली अणगारे तेण उरालेणं विउलेण पयतेण पग्गहिएणं एव जा चेव जहा खदगस्स वत्तव्वया सा चेव चिंतणा आपुच्छणा थेरेहि सद्धि विउल तहेव दुरूहइ, णवरं सोलस्स वामाइ साम्मण्ण परियाग पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा उड्ढ चदिमाई सोहम्मीसाण जाव चारणच्चुए कप्पे नव य गेवेज्जे विमाणपत्थडे उड्ढं दूर वीईवइत्ता विजयविमाणे देवत्ताए उवणे |१४| तएणं ते येरा भगवंतो जालि अणगारं कालगय जाणित्ता, परिनिव्वाणवत्तियं काउसग्गं करेति । पत्तचीवराई गिति तहेव उत्तरंति जाव इमे से प्रायारभडए ।१५। भंते त्ति ! भगवं गोयमे जाव एवं वयासी - एवं खलु देवाणुप्पियाणं अंतेवासी जाली नामं अणगारे पगइभद्दए, सेण जाली अणगारे कालगए कहि गए कहि उववण्णे ? एव खलु गोयमा ! मम अतेवासी तहेव जहा खदयस्स जाव कालगए उड्ढं चंदिमाई जाव विजयविमाणे देवत्ताए उववण्णे । १६ । जालिस ण भते । देवस्स केवइय कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! बत्तीस सागरोवमाइ ठिई पण्णत्ता | १७| NO
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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