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________________ २८२ नन्दीसूत्र-उपसहार न भविस्सइ, भुवि च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे, नियए सासए, अक्खए, अव्वए अवट्ठिए, निच्चे । से समासो चउन्विहे पण्णत्ते, तंजहा-दव्वरो, खित्तयो, कालो भावयो । तत्थ दव्वनो णं सुयनाणी उवउत्ते सव्वदम्वाइ जाणइ पासइ, खित्तमओ ण सुयनाणी उवउत्ते सव्व खेत्त जाणइ पासइ, कालो ण सुयनाणी उवउत्ते सव्व कालं जाणइ पासइ, भावग्रोण सुयनाणी उवउत्ते सव्वे भावे जाणइ पासइ। सूत्र-५६ अक्खर सन्नी सम्म, साइयं खलु सपज्जवसियं च । गमिय अगपविठं, सत्तवि एए सपडिवक्खा ।६३। आगमसत्थरगहण, ज बुद्धिगुणेहिं अट्ठहिं दिछ । विति सुयनाणलभं, तं पुत्वविसारया धीरा ।९४ सुस्सूसइ पडिपुच्छइ, सुणेइ गिण्हइ य, ईहए याऽवि ! तत्तो अपोहए वा, धारेइ करेइ वा सम्म १९५॥ मूग्र हुंकार वा, बाढक्कार पडिपुच्छ वीमंसा । तत्तो पसंगपारायण च, परिणि? सत्तमए ।९६। सुत्तत्यो खलु पढमो, वीनो निज्जुत्तिमीसिओ भणिओ। तइयो य निरवसेसो, एस विही होइ अणुनोगे १९७। से तं अगपविट्ठ से त सुयनाण। से तं परोक्खनाण। से तं नंदी। ॥ नंदीसुत्तं समत्तं ॥
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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