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________________ २५६ नन्दीमूत्र-मतिज्ञान सूत्र-२२ से कि त परपरसिद्ध फेवलनाणं ? परपरसिद्वकेवल नाणं अणेगविह पण्णत्तं, तजहा-अपढमसमयसिद्ध केवलनाणं दुसमयसिद्धकेबलनाण, तिसमय सिद्धकोवलनाण, चउसमयसिद्धकेवलनाण, जाव दससमयसिद्ध केवलनाण, सखिज्जसमयसिद्धकेवलनाण, अमखिज्जसमयसिद्धकेवलनाणं, अणतसमयसिद्धकेवलनाणं, से त्त परपरसिद्ध केवलनाणं, से त सिद्धकेवलनाण। तं समासयो चउविवह पण्णत्तं, तं जहा-दवो, खित्तयो, कालओ, भावो। तत्थ दवयो ण केवलनाणो सव्वदव्वाई जाणइ पामइ । खित्तनो णं केवलनाणी सव्वं खित्त जाणइ पासइ। कालो णं केवलनाणी सव्वं काल जाणइ पासइ। भावनो णं केवल नाणी सव्वे भावे जाणइ पासइ । अह सव्वदबपरिणामभावविण्णत्तिकारणमणत । सासयमप्पडिवाइ, एगविहं केवल नाण ६६! सूत्र-२३ केवलनाणेणऽत्ये, नाउ जे तत्य पण्णवणाजोगे। ते भासइ तित्थयरो, वइजोगसुय हवइ सेसं।६७।। से त केवलनाण, से त णोइदियपच्चरखं, से त पच्चक्खनाणे। सूत्र-२४ से किं नं परोक्खनाण ? परोक्खनाण विहं पण्णत्त, तजहा-ग्राभिणिनोहियनाणपरोक्खं च, सूयनाणपरोक्स च, जत्थ प्राभिणिवोहियनाण तत्थ सुयनाणं, जत्थ सुयनाणं तत्थ आभिणिबोहियनाण, दोऽवि एयाई अण्णमण्णमणुगयाइ, तहवि पुण इत्य पायरिया नाणत्त पण्णवयति-अभिनिवुज्झइत्ति माभिणिवोहियनाणं, सुणेइत्ति सुयनाणं, मइपुन्व जेण सुयं न मई सुयपुब्विया।
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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