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________________ २५० नन्दी सूत्र - अवविज्ञान से त्तं वमाणयं ग्रोहिताण । सूत्र - १३ से किंत हीयमाणयं श्रहिनाण ? हीयमाणयं हिना अप्पसत्येहिं ग्रज्भवसायद्वाणेहिं बट्टमाणस्स वट्टमाणचरित्तस्स संकिलिस्समाणस्स संकि लिस्समाणचरित्तस्स सव्व समता ग्रोही परिहायइ से तं हीयमाणयं श्रहिनाण | सूत्र - १४ से किं तं पडिवाइ ग्रहिमाण ? पडिवाइ ओहिनाण जहणणेण गुलस्त असखिज्जयभागं वा संखिज्जयभागं वा वालग्ग वा वालग्गपुहुत्त वा लिक्खं वा लिक्खपुहुत्तं वा, जयं वा जयपुत्तं वा, जवं वा जत्रपुहुत्तं वा, अंगुलं वा अंगुलपुहुत्तं वा, पाय वा पायपुहुत्तं वा, विहत्थि वा विहत्यिहुतं वा, रण वा रयणिपुत्तवा, कुच्छि वा कुच्चिपुहुत्तं वा, धणु वा धणुपुहुत्तं वा गाउग्र वा गाउयपुहुत्तं वा जोयणं वा जोयणपुहुत्त वा, जोयणसय वा जोयणसयपुहुत्तं वा, जोयणसहस्स वा जोयणसहस्मपुहुत्तं वा, जोयणलक्ख वा जोयणलक्खपुहुत्त वा, जोयणकोडि वा जोयणको डिपुहुत्तं वा, जोयणकोडा कोडि वा जोको कोडित्त वा, जोयणसखिज्ज वा जोयणसंखिज्ज पुहुत्त वा जोयणप्रसखेज्ज वा जोयणश्रसंखेज्जपुहुंत्तं वा उक्कोसेण लोग वा पासित्ता ण पडिवइज्जा से तं पडिवाइ ग्रोहि • ! नाण । सूत्र - १५ से किं तं ग्रपडिवाइ सोहिताण ? ग्रपडिवाइ मोहिनाणं जेण अलोगस्स एगमवि आगासपएस जागइ पासइ तेण पर ग्रपडिवाइ ग्रोहिताण । से त पडिवाइ श्रहिनाण | सूत्र - १६ तं समासग्रो चउब्विहं पण्णत्तं तजहा - दव्वग्रो, 1
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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