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________________ जैन स्वाध्यायमाला २१५ पलियमसंखेज्जेणं, होइ भागेण तेऊए । ५२| दस वाससहस्साइ, तेऊए ठिई जहन्निया होइ । दुन्नुदही पलिश्रवम, असंखभागं च उक्कोसा ॥ ५३ ॥ जातेऊए ठिई खलु, उक्कोसा साउ समयमन्भहिया । जहन्नेणं पम्हाए, दस उ मूहुत्ताहियाइ उक्कोसा | ५४ | जा पहाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया । जन्त्रेण सुक्काए, तेत्तीस मुहुत्तमब्भहिया । ५५ । किन्हा नीला काऊ, तिन्नि वि एयाओ अहम्मलेस्साओ । एयाहि तिहिवि जीवो, दुग्गई उववज्जई | ५६। तेऊ, पम्हा, सुक्का, तिन्नि वि एयाओ धम्मलेसाओ । एयाहि तिहि वि जीवो, सुग्गइं उववज्जई |५७| लेस्साहि सव्वाहिं, पढमे समयम्मि परिणयाहिं तु । न हु कस्सइ उववालो, परे भवे अस्थि जीवस्स १५८ | लेस्साहि सव्वाहि, चरिमे समयम्मि परिणयाहि तु । न हु कस्सइ उववाओ, परे भवे प्रत्थि जीवस्स | ५६ | तमुहुत्तम्मि गए. अतमुहुत्तम्मि सेस चेव । लेस्साहि परिणयाहि, जीवा गच्छंति परलोयं ॥६०॥ तम्हा एयासि लेस्साण, आणुभावे वियाणिया । अप्पसत्थान वज्जित्ता, पसत्याश्रोऽहिट्ठिए मुशी । ६१ । || लेसज्झयण सम्मत्त ॥ ३४ ॥
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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