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________________ २०६ उत्तराध्ययन सूत्र अ ३२ रागस्स हेउ समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउ श्रमणुन्नमाहु || भावेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, कालिय पावइ से विणासं । रागाउरे कामगुणेमु गिद्धे, करेणुमग्गावहिए गजे वा । ८ जे यावि दोस समुवेइ तिव्व तसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं । दुद्दतदोसेण सएण जनू, न किंचि भाव ग्रवरुज्झई से ॥६०॥ एगतरत्ते रुइरंसि भावे, अतालिसे से कुणई पद्मसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ वाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो || १ | भावाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे । चित्तेहि ते परतावे वाले, पीलेइ अत्तट्ठगुरु किलिट्ठे ॥६२॥ भावाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्नियोगे । वए वियोगे य कह सुहं से, सभोगकाले य प्रतित्तलाभे ६३ | भावे प्रतित्ते य परिग्गहम्मि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुट्ठि | अतुट्टिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आययई प्रदत्त |१४| तण्हा भिभूयस्स ग्रदत्तहारिणो, भावे प्रतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुग वडइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से । ६५ । मोसस्स पच्छा य पुरत्ययो य, पद्योगकाले यदुही दुरते | एवं प्रदत्ताणि समाययंतो, भावे अतित्तो दुहियो ग्रणिस्सो | १६ | भावापुरतस्स नरस्स एव, कत्तो सुह होज्ज कयाइ किंचि । तत्यो मोगेवि किलेसदुक्ख, निव्वत्तई जस्स करण दुक्ख | ७| एमेव भावम्मि गयो पत्रो, उवेइ दुक्खोहपरपराओ । पदुदुचित्तोय चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे |१८| भावे विरतो मणुश्रो विमोगो, एएग दुक्खोहपरपरेण । न लिप्पई भवमज्भेवि संतो, जलेण वा पोक्खरिणी पलासं । ६६
SR No.010312
Book TitleJain Swadhyaya Mala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh Sailana MP
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1965
Total Pages408
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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