SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 98
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (७६) जन सुबोध गुटका होने वाली ना टल, सीया कहे कुछ गौर कर ॥१०॥ ११५ परभव प्रबंध (तर्ज-अटारियां पे गिरारी कबूतर आधीरात ) मुसाफिर यहां से खरची लेले लार-मुसाफिर यहां से ॥टेर ॥ यह संसार है शहर पुरानो, जिसका मोहराज मुखत्यार || मु०॥ १॥ पाप अठारे ये हैं लुटारे, त इनले रहियो होशियार ॥ २॥ राणा और राजा छत्रपति कई, गया है हाथ पलार ॥ ३ ॥ पांच कोस को बांधे जावतो, परभव की वूम न वार॥४॥ नये शहर में जाना तुझको, वहां नहीं नानीका द्वार ॥ ५॥ मनुष्य जन्म की अजब दुकान है, जिसमें नाना विध व्यौहार ॥६॥ ज्ञान दर्शन चारित्र तपस्या, यह लीजो रत्न संग चार || ७ || सुकृत बोड़ो झीण यत्ला को, जिस पर होजा असवार ॥ ८॥ दश विध यति धर्म सुखडी, दानादिक कलदार ॥ ६॥ शिवपुर पाटण वीच पधारो, जहां पावोगा सुख अपार ॥ १० ॥ गुरु हीरालाल प्रसाद चौथमल, कहे तुझे ललकार ॥ ११ ॥ उन्नीसे सीतर टॉक शहर में, पाया छः ठाणा सेखे काल ॥ १२ ॥ - ११६ रण्डीवाजी निषध, (तर्ज--या हसीना वस मदीना, करवला में तू न जा) श्रय जवानों मानों मेरी, रण्डी बाजी छोड़दो । कपट की भंडार है, तुम रण्डीवाजी छोड़दो ॥ टेर ॥ पोशाक उमदा जिस्म पर लज, पान से मुंह कोरचा टेड़ी निगाह से देखती,
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy