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________________ (६८) जैन सुवोध गुटका। nananananannaannnaam, NAAMRAPA सताना ऐ मियां !, उस रब को कव मंजूर है । टेर ।। तूं कहे इस जहां में, हर शे में उसका नूर है । तो हर शे महोब्बत ना करे, ये भूल तेरी पूर है ॥ दिल० ॥ १॥ अए दिवाने कर निगाह, क्या. उसका असली अमूर है। चार दिनकी चांदनी पे, क्यों हुआ मसरूर है ॥ २ ॥ ससकीन के ऊपर सदा, तू क्यों करे मकहर है। नीजात ना होगा कभी, ये तो सही मजकूर है ॥ ३॥ जो जुल्म को करता सदा, दिल में रख मगरूर है। पड़े दोजख बीच में, वह ता चकनाचूर है ॥ ४॥ फते लाखों में करे, और वजावे रणतुर है। चौथमल कहे फ्स. मारे, वोही जहां में शूर है ॥ ५॥ १०३ प्रभु प्रार्थना. (तर्ज-अटारियां पे गिरारी कबूतर आधीरात) आज की नय्या डूब रही मझधार ॥टेर ॥ सोते मोह की नींद खेवैया-दिलमें नहीं करते विचार आर्ज०॥ १॥ अविद्या छाई भारत में-नाइत्फाकी बेशुमार ॥२॥ कहें किससे और कौन सुने हैं, बन बैठे दिलके सरदार ।। ३ ॥ हिंसा झूठ-निन्दा घट घटमें -सत्संगका कम प्रचार ॥ ४ ॥ चौथमल कहे सत गुरू की शिक्षा माने से होगा उद्धार ।।५।। १०४ मांस निषेध. (तर्ज-गजल या हसीना बस मदीना, करवलामें तू न जा ) सख्त दिल हो जायगा तू, गोश्त खाना छोडदे । रहम फिर रहता नहीं, तू गोश्त खाना छोड़दे ।। टेर॥ जो रहम दिल में न
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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