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________________ ( ६० ) जैन सुवोध गुटका । 9 1 कपट जाल फरेब या तिरघट कहो । चीता चोर कमानवत्. तू दगा करना छोड़ दे | जीना० ॥१॥ चलते उठने देखत, बोलंत हंसते गा । तोलने और नापने में, दगा करना छोड़ दे ॥ २ ॥ माता कही बहनें कही, पर नार को तकता फिरे क्यों जाल कर जाहिल वने, तू दगा करना छोड़ दे || ३ || मर्द की औरत चने, औरत का नापुरुष हो । लख चौरासी योनि भुगते, दगा ' करना छोड़ दे ॥ ४ ॥ दगा से श्री पोतना ने, कृष्णको लिया गोद में | नतीजा उसको मिला, तू दगा करना छोड़ दे ॥ ५ ॥ कौरवोंने पांडवोंने, दगा कर जूया रमा द्वार कौरव की हुई, तू दगा करना छोड़ दे || ६ || कुरान पुरान में है मना, कानून में लिखी सजा | महावीरका फरमान है, तू दगा करना छोड़ दे ॥ ७ ॥ शिकारी करके दगा, जावोकी हिंसा वह करे। मंज. र और वुगकी तरह, तू दगा करना छोड़ दे ॥ ८ ॥ इज्जत में श्राता फरक, भरोसा कोई न गिने । मित्रता भी टूट जाती, दगा करना छ।ड़ दे ॥ ६ ॥ क्या लाया क्या ले जायगा, तू गौर कर इस पर जरा | चौथमल कहे सरल हो तू दगा करना छोड़ द ॥ १० ॥ ६० महिला हितोपदेश. (तर्ज-- सत्य धर्म ए सबको सुनाय जायेंगे ) बहिनों शिक्षा पर ध्यान तुम दीजोष ॥ ढेर | उत्तम कुल की होकर बाला, नीच कर्तव्य मृत कीजोए । बहिनो० ॥ १ ॥ रूपवान पर पुरुष कैसा ही, उस पर कभी मत रीझोए ॥ २ ॥ विद्या शील दोही भूषण तुम्हारा खुश हो तन पर सजलोए ॥ ३ ॥ निर्लज्ज गीत कभी नहीं गानां, नशा बुरा तज दीजोप ॥ ४ ॥ सासु श्वसुर और देवर जी का, कभी न निरादर कीजोए ॥ ५ ॥ घर में संप रहे तो संपत्ति सारी, न कटु वाक्य कह खीजोए ॥ ६ ॥ सत्य वक्ता विदुषी सती का, सत्संग का • "
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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