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________________ ( २२ ) जैन सुवोध गुटका | आग में, भागवत बतलावेरे । चित्रकेतु के लाल ने राख्यां जहर पिलावेरे || ५ || अस्मी साल इन्दौर चौमासो, दितवारा में ठावेरे | गुरु प्रसादे चौथमल, उपदेश सुनावेरे ॥ ६ ॥ | ३१ दान की योजना. (तर्ज-नाही नवल वनीका व्याव में ) सारे मन्दरिये वरण ने हालो, तीन भवन रा नाथ || ढेर || सज श्रङ्गार कामिनी वारी, उभी मार्ग सांग | धन दहाड़ो आज को वारी, प्रभुजी हम घर आय || १ || भांत २ का भोजन द्वारी, उभी लेके थाल । एक कहे प्रभु पधारो, करदो जल्दी निहाल || २ || नगर कौतुम्बी चीच प्रभु, फिरे अभिग्रह धार | थोडासा चाकला ले दी, चन्दनवाला को तार || ३ || त्रशला दे के लाड़ला, प्रभु सिद्धार्थ के नन्द | चौथमल की मनोकामना पूरो वीर जिनन्द ॥ ४ ॥ ३२ फूट की करतूत. ( तर्ज - पनजी मूंडे दोल ) . फूट तज प्राणीरे २, आपस की फूट है या दुख दानीरे || ढेर || पड़ी फूट गयो बदले विमीक्षण, रावण बात नहीं मानीरे | सोना की गई लंका टूट, मिट्टी में मिलानीरे ॥ १ ॥ कौरव पांडव के आपस में, जब या फुट भराणीरे । लाखों मनुष्य गये मरी युद्ध में, हुई नुकसानीरे
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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