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________________ जैन सुबोध गुटका। (१६) पानीरे । हाथ न आई पदमणी, गई नाम निशानीरे ॥४॥ वाशन तो विरलाय जावे, बासना रह जानीरे । तज घुमराई 'ली में भलाई, या सुख दानीरे !! ५ ॥ धर्म ध्यान से शोभा होदे, सुधरे नर जिंदगानीरे । गुरु प्रसादे चौथमल कहे, धन जिन बानीरे ॥६॥ २७ लक्ष्मणजी का राम से कहना, (तर्ज-कंवरा साध तणो आचार ) लछमन अरज करे हित काज, सुनो श्री रामचन्द्र महाराज ॥ टेर ॥ सीता है निषि प्रभुजी, मत बनवास पठावें। दुनिया की प्रतीत नहीं है, खाली गप्प ऊडावे ॥१॥ पानी में पत्थर तिरेस कोई, हो पश्चिम दिनकार । नेन अंध देखना चाहे, सरल रूप संसार ॥ २॥ पंकज हो पापाण पै कोई, समुद्र लोपे पाल । वैश्वानल शीतलता भजे स कोई, माता मारे बाल ॥ ३॥ दिन की तो रजनी बने स कोई, रजनी दिन प्रकटाय । इतनी बात नहीं बने स जूं सिया शील नहीं जाय ॥४॥ राम कहे अपयश की मो, बात सुखी नहीं जाय । घर से इसे निकाल दूं स यह, लोक कहन मिट जाय ॥शा दांता बीच दिनी अंगुली को सुनकर ऐसी बात ! किया शीघ्रता कार्य बिगड़े, सोच करो जगन्नाथ ॥६॥ वह दिन याद करो प्रभुजी, सिया का हुआ हरण । बांसू नहीं नेन से रुकता, नहीं रुचता जल अन्न ॥७॥ कहे
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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