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________________ (१२) जैन सुबोध गुटका । १६ सत्य की महत्वता. (या हशोना बस मदीना करबला में तू न जा) सत्य कभी तजना नहीं यह सर्व गुण की खान है। विपत वारक सुर सहायक, देखलो परधान है ।।टेर। सत्यका शरणा ग्रहो, यश विस्तरे त्रिलोक में । जलाग्नि समन अहि व्याघ्र स्थंभन, विश्वास का यही स्थान है ।। १।। वशीकरण नाद् बड़ा, प्रेम का यही मित्र है । पावन परम निडर वही, प्रवल अतिशयवान है ।। २॥ नियम सृष्टि जाय पलटी, सत्य कभी पलटे नहीं । सत्य पे ही तन मन धन, तीनों ही कुरबान है ।। ३।। सत्य रवि परगट हुवे, मिथ्या तिमिर का नाश हो । सर्व सिद्ध राज्य ऋद्धि का अमूल्य निधान है॥ ४ ॥ आग के बीच बाग हो, दरियाव के बीच थाग हो । जहर का अमृत बने, और महा सुखों का स्थान है ॥ ५ ॥ अयोध्या का राज्य फिर, हरिश्चन्द्र को दिया सत्य ने । सत्यधारी भूप विक्रम, सभी करे परमाण है ॥ ६॥ गुरू के परसाद से, करे चौथमल सत्य पे जिकर । यतो धर्मस्ततो जयः सत्य पे भगवान है ॥ ७॥ . १७ सुबुद्धि. (तर्ज-थारो नरभव निष्फल जाय जगत का खेल में) ऐसा भाग्य उदय सुबुद्धि, होय इन्सान की ॥ टेर ॥ सर्व जगह प्रतीत जमावे, बात करे इमान की । मात पिता की माने केन, और लगन लगी धर्म ध्यान की ॥१॥
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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