SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३२०) जैन सुबोध गुटका । . . . .. .. नंबर ४३३ . . ... [तर्ज-पूर्ववत् ] मत चहा की चाट लगाया करो । खुद पीवो न औरों को पाया करो ।। टेर ॥ फायदा कुछ भी नहीं,नुक्सान करती है सदा । भूल कर हाथों से मी, हरगिज न तुम छूनो कदा । भर-भर प्याला न इसका उड़ाया करो ॥१॥ दूध-शकर के मजे से पीते हैं नर हो फिदा । रोग पैदा करती है और नींद हो जाती चिदा । ऐसी जान इसे छिटकाया करो ॥ २॥ वीर्य का भी नाश कर देती है, जहरीली पत्ती । नामदंपन पैदा करे नहीं झूठ है इस में रत्ती । अपने मन को जरा समझाया करो ।। ३ ।। धर्म और कर्म को, भृले हो इसकी याद में । बन गये कंगाल . कई जो लगे इस नाद में। ऐसे व्यसन को दूर हटाया करो। ४॥ फिजूल खर्ची मत करो,जो चाहते हो खुदका मला । चौथमल तुमको कभी, हरगिज न देता कुसलाह । मेरी नसीहत पर ध्यान लगाया करो ॥ ५॥ नंबर ४३४ . . तर्ज पूर्ववत् ] तेरे दिल में तो वह दिलदार बसे । तूं तो ज्ञान लगा कर देख उसे ।। टेर ॥ जैसे सुगंधी फूल में, और धातू ज्यू
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy