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________________ (२६२) जन सुवोध गुटका। wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwimminimirmire पराई छोड़दे !॥ ६॥ गुरु के प्रसाद से. कहे, चौथमल सुनले जरा । है चार दिन की जिन्दगी, निन्दा पराई छोड्दे॥७॥ - --- ३६७ पाप. [ तर्ज--पूर्ववत् ] वीर ने फरमा दिया है, पाप यही सोलमां। अखत्यार हरगिज मत करो, है पाप यही सोलमांटिरा सत्संग तो खारी लगे, कुसंग में रहे रात दिन । जुआ वाजी बीच राजी, पाप यही सोलमां॥१॥ दया दान - सत्य शील की, नसीहत करे गर जो तुम्हें । बिलकुल पसंद आती नहीं, है पाप यही सोलमां ॥ २ ॥ गांजा. चड़स चंडू: तमाखू, बीड़ी सिगरेट संग को । पी पी मगन रहते सदा, है पाप यही सोलमां ॥ ३ ॥ ज्ञान ध्यान. ईश्वर भजन.में, नाराज तूं रहता सदा । गोठ नाटक में मगन, है पाप यही सोलमा . ॥४॥ऐश में माने रति, अरति वेदे धर्म में । कुंडरिल ने खोया जनम, है पाप. यही सोलमां ॥५॥ अर्जुन मालाकार ने, महावीर की. वाणी सुनी । चारित्र ले त्यागन किया, पाप यही सोलमां ॥ ६॥ गुरु के प्रसाद से, कहे चौथमलं सुनले जरा । चाहे भला तो मेट जल्दी, पाप यही सोलमां ॥ ७॥
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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