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________________ जैन सुबोध गुटका। (२८१) प्रशला नंदन ने ॥२॥ गुन्नतीस वर्ष गृहवास रया, एक वर्ष का वर्षी दान दिया । एक क्रोड़ अष्ट लक्ष सौनया दिया, नित प्रति त्रशला नंदन ने ॥३॥ फिर लेके संयम भार प्रभु भव जीवों का उद्धार किया । उपदेश दिया जीव रक्षा का कर करुणा त्रशला नंदन ने ॥४॥अभिमान बीच में छाकर के, खड़े इन्द्रभूति जो आकर के । जब संशय उनका दूर किया, स्वामीजी त्रशला नंदन ने ॥ ५॥ कई जीवों को तार दिया, प्रभु अब तो हुक्म हो मेरे लिये। गुरु प्रसादे 'चौथमल की अर्जी यह प्रशला नंदन ने ॥६॥ . ३८५ जप महत्वता . . [त पूर्ववत् । सुख सम्पत की गर चाय दुवे, कर जापतूंत्रशला नंदन का रोग अरु शोक मिटे तत्क्षण, कर जाप तूं प्रशला 'नंदन का ।।टेर । यही तारण तिरण जगत स्वामी है घट २ कि अन्तरयामी । मन वंछित फल सब पावेगा, कर जाप तूं अशला नंदने का ॥१॥मात अरुं तात जोन्याती है । सब । स्वार्थ का जग साथी है। शिवपुरी की तुम्हें चाह हुवे, कर जाप • तूं त्रशला नंदन का ॥ २॥ यही ब्रह्मा, विष्णु, महेश सही, , यही पुरुषोत्तम जगदीश सही। चित्त की वृत्ति को शुद्ध करे। · कर जाप तूं त्रशला नंदन का ॥३॥बयांसी साल चौमासा
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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