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________________ ( २७६.) जैन सुबोध गुटका । • मगज लड़ावेगा ॥ १ ॥ तूं चाहे बनूं फोजी अफसर, या रईस बनूं सिर चमर दुरे । जो लिखा जेल मुकद्दर में, तो | इसको कौन हटावेगा ॥ २ ॥ प्रभु आदिनाथ फिरे घर घर, नहीं बारे मास उन्हें हार मिला । नल राजा सा चनवास रहे, जो होनी होके रहावेगा || ३ || पढ़े लिखे श्रलिम फाजील वो, सिख हजारो हुन्नर को । मकसुम, बिना न रखे कोई, दर दर यह फिर फिर आवेगा ॥ ४ ॥ जर 'जेवर मेल तिजोरी में, दे ताला कुंजी पास रखे । तकदीर 'बिनाधन कहां रेहवे, वह यूं का यूं ही उड़ जावेगा ||५|| चित्र मयूर गया हार निगल, विक्रमसा भूप चउरंग हुवे । घांची के घर फेरी वाणी, फेर भावी क्या दिखलावेगा ॥ ६ ॥ कटपुतली वत् यह कर्म विश्व में, कैसा नाच नचाते हैं । कहें चौथमल विधना की रेख पर, कहो कुण मेख लगावेगा ॥ ७ ॥ 1 f ३७६ कृष्ण लीला... ( तर्ज - बंशी वाले ने ) मथुरा में आकर जन्म लिया, देखो जब वंशी वाले ने । और कंश की भूमि दी थर्रा देखो जब बंशी वाले ने || टेर ॥ थी अर्ध निशा अंधेरी वो, घनघोर घटा भी छाय रही । तनु तेज़ से किना उजियाला, देखो, जब वंशी वाले ने ।। १ ।। कर कमलों में वसुदेवजी, ऊठा चले वो झट पट से । 4
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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