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________________ (२६६ ) जैन सुवोध गुटका । बदला लेवे भागवत, भी दशोवेरे ॥ ६ ॥ गुरु प्रसादे चौथमल तो, साफ साफ़ जितलावेरे । बिना दया नहीं तिरे, चाहे तीर्थ कर पावरे ॥ ७॥ .... .. 11::: ~ . :, : : ३६७ संयति राजा को उपदेश. (तर्ज-पन्नजी की , ' . राजन् मानरे, मान मान तूं छत्रधारी, मुनि समझावरें ॥ टेर । पञ्चालदेश कम्पिल पुर को, यो संयति भूप कहावेरे । अरि कण्टक को दूर करी, आणा वरतावरे ॥ १॥ एक दिवस कौसुम्बी वन में, सेना क संग आवेरे । मारा हिरण के तीर, तीर खा मृग भग जावरे ॥ २॥ वन के चीच द्राक्ष मण्डप, जहां मुनिवर ध्यान लगांवरे । वह मृग आ तज प्राण सामने मुनिके गिरजावर ॥३॥ भूप आय तुरंत वहां देखे, मुनि ध्यानारूढ पावरे । मुनि का पाला जान मृग. राजा धवरावरे ॥ ४ ॥ शीघ्र उतर घाड़े से राजा, निज अपराध खमांवरे । रसना के वश हना श्राप, मांफी बक्सार ॥ ५॥ ध्यान खोल मुनि गृद्ध भाली, राजा से यूं फरमावरे । मैने दिया अभय दान तूं मत डर लावरे ॥ ६॥ मुझे देख तूं डरा, तुझ देखी वनचर कम्पावरे । दे. जीवों को अभयदान, पर भव सुख पावरे ॥ ७ ॥ तूंण : भक्षी मशकीन दीन को, क्यों तूं भूप सतावरे । करे कम.
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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