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________________ (१२६०) जैन सुवोध गुटका। NA अट्ठाया ॥ ५ ॥ रतलाम शहर में पूज्य समीपे, चौमासा ठाया । साल पिच्चासी सभा पीच में, चौथमल गाया ॥६॥ . ३५ पार्श्वनाथ स्तुति...' . [तर्ज-छोटी बड़ी सईयाए । ... हे प्रभु. पाच जिनन्द, भव सिंधु तिरावना ।। टेक ॥ काशी देश बनारस नगरी, वनारस नगरी । वामा रानी के कुंख, जन्म हुआ पावना ॥ १ ॥ चौसठ इंद्र मिल, मरु गिरि पै, हां मेरु गिरि पै। कियो महोत्सव घर प्रेम गावत वधावना ।। २ ।। नील वर्ण नव, हस्त है काया, हस्त है काया । एक सहस्त्र अरु पाठ, लक्षण शोभावना ।। ३ ।। मस्तक मुकुट, काना युग कुण्डल, काना युग कुण्डल । हदे अमोलक हार लटक लोभावनः ॥ ४॥ जलता नागन, नाग बचाया, हां नाग बचाया । बालपना के मांय, किया तो 'सुर' सुहावना ॥ ५ ॥ इतना उपकार, मुझ पर कीजे, हा मुझ पर कीजे । दीजे आशा अव.पूर, फलेगी' सारी कामना ॥ ६ ॥ गुरु प्रसाद चौथमल कहे, हाँ चौथमल' कहे। साल पिचासी के मांय, आनन्द वर्तावना ।। ७ ॥ या हा नाग इतना उपका फलेगी .:. . ३६० तीर्थकर गोत्र के कारण तिज-लाभल हो भवियन श्रोता ने लागेश्रो बचन जो ताजणा] : 'सांभल हो गौतम, बीस बोलां से तीर्थकर हुवे
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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