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________________ श्रीसौधर्मगच्छीयहुक्मीचन्द्रजित्सूरिश्चरेभ्यो नमः । सर्वज्ञाय नमः जैन सुबोध गुटका मंगलाचरण. दृष्ट्वा भवन्तमनिमेप विलोकनीयं, नान्यत्र तोपमुपयाति जनस्य चक्षुः । पीत्वा पयः शशिकरद्युतिदुग्धसिंधोः, क्षारं जलं जलनिधे रशितुं क इच्छेत् ॥ १ ॥ १ वीर स्तुति. ।नाटक। महावीर जिनेश्वरा, सकल सुखकरा । विधन हरण शांति करण, अपरिपु हरा ॥ टेर । सिद्धार्थ के नन्द आप छो, ब्रशला देवी मात । क्षत्री कुल में जन्म लिया है, तीन लोक विख्यात || महा० ॥१॥ वर्षीदान दे संयम लीनों,पाम्या केवल ज्ञान । मुनि तपीश्वर सुरनर किन्नर,सेवा करे नित्य पान ॥ महा० ॥२॥ अधिक चन्द्र से निमल छो तुम, रवि से अधिक प्रकाश । सागरवर गंभीर आप छो,
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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