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________________ जैन सुबोध गुटका । : ३४८ स्वम सम संसार ((तर्ज-किस से करिये प्यार यार खुद S /1 क्यों भूला संसार यार, स्वप्ने की माया है ॥ ढेर || स्वमे में राजा चना, शिर पर छेत्र घराय । लाखों फौन लार है, बैठा गज पै जाय, खुशी का पार न पाया है ॥ १ ॥ स्वमे में शादी करी, निरखी सुन्दर नार । सौया पलंग विछाय के, गले गुलाब का हार । पान मुख बीच दबाया है || २ || वन्ध्या ने पुत्र जना, स्वप्ना कैरे मंझार नारियां गावे गीत मिली । बाजा बजे दुवार, अङ्गी टोपी कई लाया है || ३ || दीन बना स्वप्ना विपे, कोडी ध्वज साहुकार । लाखों की हुडियां लिखे, मोटर बग्वी तैयार, नाम मुल्कों में कमाया है ॥ ४ ॥ चारों की निद्रा खुली, मन ही मन पछताय । गुरु प्रसादे चौथमल कहे, देखो ज्ञान लगाय, मूर्ख तूं क्यों ललचाया है ॥ ५ ॥ ३४६ ऋषभ देव से प्रार्थना. . ( तर्ज-- छोटी बड़ी तैयाएं ) PA 1 ( २५१ ) * : श्री ऋषभ देव भगवान् करो तो मेरी पालना |टिका - मैं चाकर हूं तुम चरणन को, हां तुम चरणन को । सहाय करो महाराज, दुखी को दुख से टालना ॥ १ ॥ भवसागर में, मेरी नौका, हां मेरी नौका । ज्ञानं पड़ी मझधार, जल्दी' MA
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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