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________________ जैन सुबोध गुटका। (२४८) खांसी करे, हों चतुरां ऊमी चूंघट हटाय । आज रजनी घर आवजो हो चतुरां, सुन मुख दिया पुलकाय । सुगढ़व॥६॥ रजनी हुई श्रायाःवरे हो चतुगं, पुनः आयो पति खास । लम्पट नारी रूप. करी, हो चतुरां, बैठो चक्की पास । सुगड़ ॥७॥ पति कहे सुन सुन्दरी हो चतुरां, या कौन बैठो आज । सा कहे दासी दाणो दले हो चतुरां, निज घाड़ी के काज ।। सुगड़० ॥८॥नींद आवा देवे नहीं हो चतुरा उठी ने मागलात । पांव पोस से पीटियो,हो चतुरां निकल रांड बदजात ।। सुगड़।। 8 ।। बायो जावतो निज घरे हा चतुरां, नारी यूं समझाय । अब पर घर मत जावजो, हो चतुरां सोगन दिया पलाय ।। सुगड़.॥१०॥ बैन करी सा नार ने, हो चतुरां यूं त्यागो पर नार । गुरु प्रसादे चौथमल कह हो चतुर्ग शिक्षा दे हितकार ।।सुगढ़ ॥११॥ .३४६ जिन स्तुति... .(छोटी.बड़ी सईयाए)... - श्री चौवीस जिनराज के नित्य गुणं गावना ॥टेर । पभ अर्जित संभव अभिनन्दन, संभव अभिनन्दन । सुमति पदम सुपास, चन्दा प्रभु यावना ॥१॥ सुविधि शीतल श्रीयांस वासपूज्य, श्रीयांस वासुपूज्य । विमल अनन्त धर्म नाथ, शान्ति तो वतावना ॥२॥ कुंथु अरह मल्ली मुनि
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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