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________________ न बोध गुर साव । यद हाजमा संशयरूपी, तुरत पुग्न मिट जायरे ॥ श्राए॥ सम्बत उन्नीस अस्सी साल में, देवास शहर मुझाग गुरु प्रमादेनीयमल यह, दवाखाना किया जहागर आए० ॥६॥ १३४ विपर वासना. (सर्ज-छिनगारीका ढोलादाला लाभा मेरे ) विषय अनर्थकारी, तनो नग्नारी, गुरु मीन धारी जी श्राज ॥ टेर । सुन्दर शहर को अधिपतिो, विजयसेन भूपाल । मोग गरेपी पूगे ऐयाशी, लागी यह जंजालको । विपय० ॥ १ ॥ सहल करन को निकन्योरे, गज पर हो असबार । रस्ते में एक नारीदेखी, यमर के उनिहार हो । विपय० ॥२॥रलात्कार नने ग्रहोरे, रानी ली। चनाय । मणि मोती का भृपण पत्र, तन पर दिया सजाय हो । विपर० ॥ ३ ॥ एक सपना तन भूषण, नीजो नखरो चाप क्यों नाहि कामी मृगकार, पदे फांमम पाय हो । विषय० ॥४॥राज्य कार्य मंत्री करेरे, पाए दुमा मस्तान । प्रजा भी निन्दा कोरे, रामा धेरै नहीं ध्यान हो ॥विपय० ॥५॥ रानियां अने फरे सुन सादिय: मि. न खावे पास । रोने युन्हे एक देव , पार कर निराशझो ॥ विषय ॥ ६ ॥ पर मर मिल गिरतापगी
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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