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________________ जन गयो गुटका। (०२५.) चन्दर तरह नचासी । फिर लोग कर तरी हासीरे नू० ॥५॥ यह चौथमल जितलावे | तज मोह प्रभु गुग गाये, तो धावागमन मिट जावरे ।। तूं० ॥ ६ ॥ यह मारवाड़ के माई । सादड़ी में जोड़ बनाई, इक्यासी स ल सुनार तूं० ॥ ७ ॥ ३१६ कृतयुगादर्श, (तर्ज-पयांधी यद संभलाय, मधुर स्वर ) केसा पाया यह काल, राजन सा पाया यह काल ॥टेर ।। बेटा वा बहिन भानजी । पाप घर निहाल ॥ सजन० ॥१॥ हाथ उधार लई नट जावे । उलटी देर गाल ।। सज्जन० ॥ २॥ धर्म हेत पैसा नहीं खरने, दुप्कृत में दे माल || मज्जन० ॥ ३ ॥ उत्तम घर नारी नाश । वेश्या से खुश हाल | सज्जन ॥ ४॥ बटी का पैसा ले ले कर पनते हुण्डीवाल || सान ॥ ५ ॥ चौधमल उपदेश मुनाद । देखी जग की चाल सिजन०॥ ॥६॥ मारवाड़ में शहर सादड़ी। भाग एक्यामी गाल।। ससन० ॥७॥ ३१७ जीवात्मा को ज्ञान, (तर्ज-तरकारी लता मासिन शार पोपानर ) सेलानी जीवदामों न माया माचा लाज मानना
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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