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________________ जिन योषा | कहे चौथमल इस देह से, अनन्त जी तरे ॥ मनुष्य० ॥५॥ 109 ३०१ दया दिग्दर्शन. ( तजे लावनी अष्टपदी ) / २१३ ) दया को पाले है बुद्धिवान, दया में क्या समझे हैवान ॥ टेक ॥ प्रथम तो जैन धर्म मांही, चौवीस जिनराज हुए भाई, मुख्य जिन दया ही बतलाई, दया दिन धर्म को नांई ॥दोहा॥ धर्म रुची करुणा करी, नेमनाथ महाराज | मेघरथ राजा परेवा शरणे, रख कर सान्या काज ॥ हुए श्री शांतिनाथ भगवान । दया पाले हैं || १ || दूसरा विष्णु मत भुंकार, हुए श्रीकृार्दिक अवतार, गीत और भागवत कोनी और पेड़ों में दया लोनी || दोहा || दया सीखो पुन्य नहीं, अहिंसा परमोध | सर्व मत थोर सर्व ग्रंथ में, यही धर्म का मर्म || देखलो निकाल घर ध्यान, दया को पाले || २ || तीसरा मत हैं मुसलमान | खोल के देखो उनकी कुरान, रहम नहीं हो जिसके दिल दरम्यान उनीको स्ट्रीम लो जान || दोहा || कहते महमद मुस्तफा, सुन लेना इन्सान | दुख देवेगा किसी जीव को गोदी दोजख को खान | गार जहां मुद्गल की पहचान || दया० ॥ ३ ॥ है उसी मत ताई, कि जिस में जीव दया नाहीं | जीव रक्षा में पाप कहेबे, दुख दुर्गा का सहये || दोहा ॥ मा हग २ चनन है, देखो | सूत्र राजाने नहीं मुख्य
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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