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________________ जनाची गुटका A . y रहे. करती पुकार हूँ ॥ कसूर० ॥ १॥ जोर मेरा नहीं चले. दिल मानता नहीं । जो कुछ कहे तो यह कहें, में तो लाचार हूं। सूर० ॥२॥ हाजिर हे सर्व धन सेज इरन श्राप के। चाहे मान चाहे तान मैं अबला नार हूं ।। कसूर ॥शा करके महरवानी मेरी बात को सुनो । चरन गिलं हाथ जोड़ तांदार हूं। कमर० ॥ ४ ॥ कह चौथमल जसे प्यारी अर्ज यह करे । घर रहो चाहे बन रहो संग में तयार । कसूर० ॥५॥ २६६ ब्रह्मचर्य पालने का उपाय. (त-घड़ी मुशकिल कठिन फीरी) जो ब्रह्मचर्य धरता है, तो उसका चंदा पार है ।।टेर।। महावीर स्वामी फरमाचे, शील तगी ना यालाये, स्त्री पशु पंडग वहां रहावे, वहां से नहीं मागचारी, विनी चूहा डरता है ।। जो० ॥१॥ कथा करे नहीं नार की प्यारी, निम्य इमली न्याय विचारी, बैटे स्त्री, दे टारी, घृत श्रमि के अनुसार है, नहीं फो जरा पड़ना है ।। जो. ॥ २ ॥ त्रियाः तन को नहीं निहारे, करे नैन j सूर्य से टारे, पेचान्तर सो नर नारे, मानु जैसे मेघ गुमार है, गुन मयूर नृत्य करता है जो० ॥६॥पूर्व काम नहीं चिन्ते लगारी। पढाइ छार न्याय उरधारी । वनीट मद
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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