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________________ (१६८) जैन सुवोध गुटका। .amannamronnanoramannmandarmanorammarnama ॥ स्वामी ॥ ६॥ त्रशला के लाल आप मुझे तार दीजिए। अब चौथमल चरण शरण, वाच आगया ।। ७॥ . . २८३ सद्गुरू वाणी. . (तर्ज--थारो नरभव निप्फल जाय जगत का खेल में) तुझे देवे सद्गुरु ज्ञान चलो अब मोक्ष में || टेर ।। पुण्य प्रभाव सम्पति पायो,आयो मानिक चोक में । दया दान तप जप करले, मत रहे खाली शोक में || तुझे० ॥१॥ गर्व करे मत धन योवन को, मत राचे घर थोक में। राजा राणा छत्रपति कई, हुश्रा हजारों लोक में ।। तुझे० . ॥ २ ॥ धीरज धार तार निज आतम, सार कछु नहीं तोप में। क्षम्या करे पवित्र होजावे, समझ एक श्लोक में ॥ तुझ०॥३॥ रतलाम शहर योग मुनिवर को; मत. खो नरभव फोक में । चौथमल उपदेश सुनावे, सदर चांदनी चौक में ।। तुझ०॥४॥ २८४: इया. त्याज्य. .. " [तर्ज दादरा] देखी सुखूबी औरकी, तूं दिलमें क्यों.जले रख रख दिलको साफ वो, साहब तुझे मिले. ॥ टेर ॥ पैदा होना इन्सान. का, हर वख्त कहां मिले । फिर फंपके गुनाह
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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