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________________ - (१६६) जैन सुबोध गुटका । २८० मोह नींद. ': (तर्ज-दादरा): . ___ क्या अमोल जिन्दगी का यत्न नहीं करे। सोता. है मोह नींद में, जगाऊं किस तरे ॥ टेर।। कंचन के पलंग पर, सुन्दर से स्नेह घरे । लगा भोग का तरे रोग, नसीहत क्या करे ॥ क्या० ॥१॥ ले मुखत्यार नामां और का वकील हो फिरे । निज मिस्ल का पता नहीं, समझ यह धरे ॥ क्या० ॥२॥ माया के बीच अंध तुझे सूझ ना परे करता मजाक और का जुल्मो से ना डरे ।। क्या० ॥३॥ नं किया न लिया साथ, रहे खजाने सत्र भर देगा जबां से क्या जबाव, पूछे उस घरै ।। क्या ।। ४ ।। गुरु हीरालाल प्रसादे, चौथमल कहे सरे । कर कब्जे माल धर्म का संसार से तेरे ।। क्या० ॥ ५॥ . ." . . २८१.साग्य. त: मेरे काजी साहिब श्राज सवक नहीं याद किया) चाहे जाओ दिल्ली कोटा, फल खोटा का खोटा टे॥ जो वोए पेंड वूल का, आम कहां से खाय । वचन बदल विश्वास घाती, सीधा नरक में जाय । पड़े यम का सोटा ॥ चाहे० ॥१॥ रोजी में लात मारो गरीव के,चुगली परकी खाओ। पर नारी के रसिया बन के,मदिरापान उड़ाओ। कह :
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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