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________________ (. १६४). जैन सुबोध गुटका। न पैदा भया भया ॥ दुनियां० ॥२॥ लीलम की खान पाय के, मोताज तूं रहा । दरियाव में रहे प्यासा, वह पछतायगा जिया ।। दु०॥३॥ लाया था माल बांध के, वह यहां खरच किया। अब आगे का सामान तेने, साथ क्या लिया ।।दु०॥ ४ ॥ गुरु हीरालाल प्रसाद, चौथ- . मल जिता रहा । कर दया दान पावे. मोक्ष, दुख नहीं तिया ॥ ५ ॥ २७६ काल का जासूस. (तर्ज-रजवाड़ी माडः-सरदार थांको पचरंग पेचो) . ' अयोध्या को. अधिपतिरे, हिरण गर्भ है खास । एक दिन बैठा शयनमरे, करता हांस विलास । हो. महाराज निज की रानी से करे वाता म्हांका राज ॥१॥ दीवार पर शीशो लग्योरे, ता बिच भूप निहार । अचानक चेहरो ऊतर गयोरे, चिन्ता का नहीं पार । हो महाराज देखी रानीजी घबरानी म्हांका राज ॥ २ ॥ विलास जगह उदासीनतारे, रंग में पड़ायो भंग । गलानी बाई गईरे, यह क्या होगया, ढंग हो महाराज रानी.दीन वचन ऊवारे म्हांका राज.॥३॥ कंचन थाल भोजन भलारे, पान का बीड़ा हाथ । ज्योति जगमग आपकीरे, कहो वितक वात । हो अन्नदाता आपकी सरत. क्यों कुम्हलानी म्हांकाराज ॥४॥ हुक्म लेयने श्रावीयोरे, यम को दूत इस वार,
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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