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________________ जैन सुवोध गुटका । को भक्ष कर । वह पापी यहां से मरकर, पैदा हो जम के घर । जहां गुजों की सार धड़ाधड़ है ॥ मना० ॥३॥ कहे चौथमल रात का, तू खाना छोड़दे । रोगों की खान जान के, दिल इससे मोड़दे । नहीं तो लक्ष चौरासी का बड़ा घर है। मना० ॥४॥ २७६ ज्ञान.. (तर्ज-दादरी) सबसे बड़ा ज्ञान है तू इसके ताई पढ़। ज्ञान के बिना न मोक्ष, उपाय कोढ़ कर ।। टेर। पानी में मच्छ नित्य रहे नारी के जटा शीश ! नाखून लंरे देखले, सिंहो के पांव पर ॥ सर्व०॥ १॥ वुक ध्यान राम शुक, गाड़र मुंडात है. । ये नाचे हिंज राख तन, लपैटता है खर ।। सब० ॥२॥एसे करेसे मोक्ष हो, तो इनको देखले । वेको न बद सख़्मों के झांसे में धानकर ।। अव० ॥३॥ हैवान और इन्सान में, क्या फर्क है बता । ज्ञान की विशेषता, जुल्मों से जावे टर। सब० ॥४॥ पाकीजा दिल को कीजिये, कर रहिम जान पर । जिन बैन का ऐनक लगा, 'चल राह नेक पर ॥ सब० ॥ ५॥ गुरु हीरालाल परसाद, चौथमल कहे तुझे । वैशक मिलेगा मोक्ष तुझे वे किये उजर ॥ ६ ॥
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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