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________________ (१८६) जैन सुवोध गुटका। बालक बुढा ना गिने,फकीर अमीर को । तीतर को दबाता है वाज, मिशाल यहीं धर ॥ अजल० ॥ १ ॥ तलवार बाल वांध के, फिरता है शूरमा । उसके मुकाबले में वो, डरता है सरासरं ॥ अजलं० ॥ २॥ गढ, कोट, किल्ला वीच, भुंवारे में उतरजा। नहीं छोड़ता है. एक मिनट, उपाय कोड़ कर ।। अजल० ॥ ३ ॥ क्यों न बादशाह हो सरदार सबों का.। चलता न उसके सामने किसी का भी उजर ॥ अजल०॥४॥ गुरु हीरालाल परसाद, चौथमल कहे तुसे। कर जाप वर्षमान का तो, पावे मोक्ष घराजिलपाशा २६६: राजुल का कहना (वर्ज-फाफी की होली ) ... ... मैं कैसे करूं अरररर, सांवलियो न जाने मेरी: पीर : ॥ टेर।। तोरन..से : फिरे सुन सोनी, तब तनसे उघड़ियो. चीर । फटयोरी वह तो चर रररर सांवरियोः ॥१॥ यादव की सब जान हुई लजित, मैं तो बनी अधीर । कॉपीरी मैं तो थर र । सवि० ॥२॥ लोकन में सुन कर बदनामी, नैनों से वाल्यो मेरे नीर । रोई री मैं तो धर ररर ॥ सांब० ॥ ३॥ चौथमल कहे राजुखं दे वोले, प्रभु हरो मारी पार । कहूं री मैं तो चरणो में पर र र र ॥ सांव०॥४॥ mirikisini
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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