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________________ (१८२) जैन सुबोध गुटका। - नहीं खाने का साथ सामान लिया, खुद देश की वह तो सफर ही नहीं ॥ अरे ॥२॥ न तो तीन में है न तुं तेरह में है न तूं सत्तर और बहत्तर में नहीं । चाहे दिलसे तूं अपने उमराव बने, तेरी दुनियां में कुछ भी कदर ही नहीं ।। अरे० ॥३॥ जो तूं माल खजाने को अपना कह, सच कहूं तूं उसका अफसर ही नहीं । न मकान दुकान न होगी तेरी, तेरा खास तो इस पे उजर ही नहीं ।। अरे० ॥४॥तुझे है भी खबर कैसे हुए जवा, जो नूर नूरानी कसर ही नहीं । जिनके पांव स.जमीं करे थरथर, वो कहां गए उनका वशर ही नहीं ॥ अरे०॥ ५ ॥ मत किसी को सता कहां हुक्म-वता, खूब गुनाह किया तो भी सबरं ही नहीं। और बातें तो लाखों करोड़ों कगे, खास मतलब है जिसका जिकर ही नहीं ॥ अरे. ॥६॥ यह तो योवन है चार दिनों का सनम, इस पे करना तुझे है अकड़ ही नहीं । कहे चौथमल जिनराज भजो, भाभिमान तजो फिर खतर ही नहीं अरे० ।। ७ ।। .. ... . २६४ मोह महत्त्वता. . (तर्ज शरद पुनम की रातरे काई. जां दिन जनमिया नागजी ) ____ हंसजी, आठ करम के मायनेरे कोई, मोह कर्म मोठो महिपति, हो हंसजी । हंसजी सब पापन को सेवरोरे कोई हैं इनकी मोठीथिति हो हंसजी ॥ १॥ हंसजी, एकादश
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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