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________________ (१८०) जैन सुवोध गुटका। mmmmmmmmmmmmmmmmmmmm. minimum २६२ राम सेना.. (तर्ज-ख्याल) आया रामचंद्र महाराज लंका गढ़ ऊपरे ॥टेर ॥ राम लखन सुग्रीवजी सरे, अंगद और हनुमान । भामण्लादिक शूरमा सरे, फौजों संग बलवान || आया० ॥१॥ मागे बीच कई नृपति जीती, उनको भी संग लीना । सेतू बांध समुद्र उतर डरा, हंस द्वीप में दीना || आया० ।। २ ।। रावन सुन कर कोपियो सरे, सेना पे हुक्म चढ़ाया । मारो ताड़ो फर्ज बजाओ, जो नमक हमारा खाया ।।. आया० ॥ ३ ॥ आय विभीषण कहे प्रात को, जल्दी से बिनशे काज । बिना सोचे फर्म कमाया, तूंने खोई कुल की लाज || आया०॥४॥ जिनकी 'लाया कामिनी सरे, लेवा आसीः न्याय । दियां से पाला फिरे स थारी, इज्जत सब रह जाय ।। आया० ॥ ५ ॥ इंद्रपुरी सी: लंका नगरी, क्यों खो- खुद हाथ । इंद्रजीत कहे काका डरकन, मतं कर ऐसी बात || ओया० ॥ ६ ॥ प्रथम भ्रात से कपट करी, दशरथ के ताई बचाया । अब भी उबायो चाह, भैद तेरे मनका हमने पाया || आया० ॥ ७ ॥ इंद्रजीतलू सो बल मेरा, राम लखन क्या चीज । अब नहीं छोड़ो साबता सरे; नहीं होवे बीज की तीजः॥ आया० ॥ ८॥ नहीं अरि से हेतः हमारे, सुन बेटा नादान । देखं जैसी मैं कहुं सरे, होने वाली हान आयाणा॥ काम अंघ है पिता तुम्हारा, तूं जन्मान्ध संमान | पुत्र नहिं तूं . अरि बराबर, अब जाती लंक पहचान । आया०॥१०॥रावन
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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