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________________ (१७२) . जैन सुवोध.गुटका । तुफान उठाने वाले.॥२॥ या रामचन्द्र की रानी, सतियां में श्रेष्ठ बखानी । तेने यह क्या दिल में ठानी, कुल के दाग लगाने वाले ॥३॥ मेरे दिल में यह नहिं भाई, मैं घर में दूं समझाई। दे पीछी इसे पठाई, निज लाज ममाने वाले ॥ ४. 11. कहे रावण कोप भराई, मत कहना बात फिर आई । बस समझो मन के माही, निजसुख के चाहने वाले ॥५॥ लगे रामचन्द्र तुझे : प्यारा, तो जा उसके पास ततकारा । जब शरणं राम का धारा, 'बिभीक्षण सत्य पे रहने वाले ॥ ६॥ कही बात बहुत सुखदानी, रावण ने उल्टी तानी । वदे चौथमल सत्य बानी, कहे कहां तक कहने वाले ॥७॥ २५४ अज्ञात का उपदेश असार. तर्ज-लावणी वेर खड़ी] जो खुद ही नहीं समझा, वह गैरों को क्या समझावेगा। जो खुद ही सोया पड़ा हुआ, सोते को क्या जगावेगा ॥ टेर ॥ जो हर सूरत से लायक नहीं, वह गैरों पे क्या ऐसान करे । जो जहाज खुद ही फूटा, वह क्या पार इन्सान करे। जो खुद ही दरिद्री है, वह गैरों को क्या. धनवान करे। जिसकी बात माने नहीं कोई, वह क्या वृथा मान, करे । जो खुद ही बन्धा हुआ है; वह गैरों को क्या छुड़ावेगा ॥ जो० ॥१॥ जो खुद ही व्यसनी है, वह गैरों को क्या उपदेश करे । जो खुद खत लिखने
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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