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________________ womaamananmmmwwwwwwwww ६.१६६) जैन सुवोध गुटका। देने वाले चार किस्मके मान ॥४॥.मानी हो चाकर का चाकर, सदा परतंत्र रहावे । मुनि चौथमल कहे वह मानी फिर, कृत्य का फल पावे । न संदेह इसमें पान ॥शा ... .. .. २४६ श्री गुण. . (तर्ज-मजा देते हैं क्या यार तेरे वाल घुघर वाले) , उसे जानों धारनी नार, गुण इकवीस के धरने वाली ॥ टेर ।। सोम महा सुख दाय, सत्य वदे सरल स्वच्छकाय । नहीं क्षुद्र रूप रसाल, पापों से डरने वाली ॥ उसे० ॥१॥ लज्जा भी रखे धनरी, सम दृष्ट दया बहुतरी । गुन रागन सरल स्वभाव, धर्म कथा के करने वाली. ॥२॥ शुद्ध कुल जात की जाई,करे काम सोच मन माही। धर्मात्मा गुण की जान, शिक्षा सिर धरने वाली ॥ ३ ॥ सब घर का दिन जो करती । पर हित में दृष्टि वह धरती । लब्ध लखी वो नार वहीं कुल उद्धार ने वाली ॥४॥ गुरु हीरालाल मनि राई कहे चौथमल हुलसाई। ऐसी जानों रुकमण नार, जो गोविन्द वरने वाली ॥५॥ ..२५० शिक्षा. . (तर्ज-लावणी बेर खड़ी).. . ..पा मोका सुकृत नहीं करता, वह जहां में इन्सान नहीं। हीरा त्याग मुकर..को . लेवे, वह जौहरी प्रधान नहीं
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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