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________________ (१६२) ज़ैन सुबोध गुटका । - - सोते, नारी का रूप.जोते । अरे हरें सुख थात, तू क्यों. रहा लुभाई ।। जा० ॥१॥..पोशाक. तनं सजाते, इतर फुलेल लगाते । बांगों के बीच जाते, सैले करें साई. ॥ २॥ दुनियां तो है तमाशा, पाना में जूं पताशा । जब निकल जाय स्वांसा, दे मिट्टी में मिलाई ॥३॥ कौन किसी के साथ जाता, नाहक तु दिल फसाना । कर धर्म साथ आता, दिया चौथमल चताई ।।.४ ।। २४४ दया दिग्दर्शन (तर्ज-म्हारोश्याम करेला अवधार घनश्यामरी मामा अपार है) __दया को लेव दिल में धार, वो भव सिन्धु तिरे ॥ टेर। दया धर्म सब में परधान, सब गजहर करते पर मान, देखो सूत्र दरम्यान, वो भव सिन्धु तिरे ॥ १॥ देखो नेम नाथ भगवान, त्यागी राजुल महा गुणवान, पशुओं पे करुणा अान, वो भव सिन्धु तिर ॥२॥ धर्म रुची तरसी अणगार, कीडियां की दयाः दिल धार । कड़वा हुंचाको कीनो आहार, वो भव सिन्धु तिरे ॥३॥ मेघरथः राजा हुआ भूपाल, शण परे वारख्या दयोल । कीना है काम कमाल, वो भव सिन्धु तिर ॥४॥फेर हुमा शिवी राजान, कबूतर की वचाई जान । है विष्णु में लिखा बयान, वो भव सिन्धु तिरे ॥ ५॥ नबी महम्मद हुआ. हजूरः तन को देना किया मंजूर । फांकता पै कीनी दया पूर, वो भव
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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