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________________ जैन सुबोध गुटका ( १४६ ) सत्य० ॥ | १ || जय हरिचन्द्र ने मयन से, तलवार निकाली बहार | चोटी पकड़ नीची करी, रोने लगी है नार ||२|| कहाँ पीहर कहां सासरो, और किससे करूं पुकार | तेरे कदमों में पहूं, कीजे जरा विचार || ३ || हे प्रीतम तारागति का, फिर मिलना दुशवार । कर जोड़ी थरजी करूं ना लिना मैंने हार ॥ ४ ॥ इन कर्मों में क्या लिखा सुखजो प्राण आधार | देख व्यवस्था रानी की, राजा करे विचार || ५ || चाकर हूं चंडाल का, हुक्म का तावेदार | सत्य मेरा सुन्दर डिगे, इसका मुझे विचार ॥ ६ ॥ कहे इन्द्र यूं श्रायकेरे, म्यान करो तलवार | धन्य तुझे धन्य रानी को, धन्य तुझं राजकुमार || ७ || रानी पुत्रकां दुःख टला है, मिला सकल परिवार । सुखी होयेने राजा हरिचन्द्र, पहुंचा अयोध्या मंझार ॥ ८ ॥ गुरु हीरालाल प्रसाद से कहे, चौथमल हितकार । सत्यं धारी ऐसा नर सूरा, विरला है संसार ॥ ६ ॥ • २२८ शिवपुर पथ प्रदर्शक कौन १ [ तर्ज मांने मोतीड़ा मोलायदो म्हांके यही झगड़ो ] शु कौन बतावेगा शिवपुर नगरी || ढेर || दाय न आवे भागोरे, दाय न यावें बीकानेर । जैपुर दिल्ली दाय न भावे, भावे ना दा अजमेर || के० ॥ १ ॥ चम्बई ने
SR No.010311
Book TitleJain Subodh Gutka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChauthmal Maharaj
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1934
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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